hindisamay head


अ+ अ-

कविता

बंजर

दिव्या माथुर


अंजाम जानते हो फिर भी
क्यों बोते हो बीज नया
मेरे शक के कीटाणु ले
ये पनप कभी पायेगा क्या
छलनी छलनी मैं हूँ अब
कुछ भी तो ठहर नहीं पाता
पत्थर से सिर फोड़ोगे
जो तुमने बंजर सींचा!


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में दिव्या माथुर की रचनाएँ