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कविता

बिछावन

दिव्या माथुर


ओस की बूँदों से
अब फिसल चुके हैं बच्चे
उनके वसंत पर
क्यों मैं पतझड़ सी झड़ूँ
उस स्पर्श का अहसास
बिछा लूँ
ओढ़ उसे ही कुछ सो लूँ


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हिंदी समय में दिव्या माथुर की रचनाएँ