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कविता

क्लोन्ज़

दिव्या माथुर


अब शायद
नवजात बच्चियों की
हत्या न हो
न स्त्री भ्रूण को
गर्भ में ही
समाप्त करने की आवश्यकता पड़े

काँसे के थालों को
अब कोलकी में बंद कर दो
क्योंकि पैदा होने वाला हर बच्चा
बेटा ही होगा

बधाइयों की अनवरत ध्वनि
से गूँज उठेगा संसार
बधाई हो
बधाई हो
बेटा हुआ है
बधाई हो

जल्दी ही
पुरुष क्लोन्ज़ की
बस्तियाँ बस जाएँगी
प्रतिलिपियों पर 
आधारित
एक ऐसी पीढ़ी 
होगी
जिसकी न माँ का पता चलेगा
न ही बाप का

संग्रहालय में प्रदर्शित
बची खुची महिलाएँ
तब भी मनोरंजन का
साधन ही रहेंगी

हाथापाई, युद्ध, लड़ाई, संग्राम में जुटी
पुरुष प्रधान पृथ्वी
कब तक टिकेगी
पर फ़िलहाल
बधाई हो!


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हिंदी समय में दिव्या माथुर की रचनाएँ