hindisamay head


अ+ अ-

कविता

पूछताछ

दिव्या माथुर


एक बेसिर और बेनाम पुरुष
हर रात मेरा पीछा करता है
अपने सिर के बारे में
वह पूछताछ किया करता है

यदि ढूँढ़ के दे दूँ उसका सिर
बेवज़ह मुझे वह न हड़काए
खून में लिपटा उसका धड़
मेरे पीछे से हट जाए

क्यूँ याद नहीं आता कुछ भी
मन मुझसे ही क्यों छिपाएगा
अधिक दिमाग पर ज़ोर दिया
तो वह अवश्य ही फट जाएगा

इसी बीच मिलती है मुझे
एक मासूम सी वह लड़की
गर्दन तक रेत में दबी हुई
लिए चेहरे पर मासूम हँसी
आँखों में उसकी खोजती हूँ

होती है मुझे बेहद दहशत
भर मुट्ठी रेत में झोंकती हूँ
और वह नहीं झपकती पलक
रेत न उसे दबा पाई

भर-भर बर्तन मैं डाल थकी
शीशे सा साफ़ लिए चेहरा
मासूम बनी मुस्काती रही
पीठ के पीछे हलचल सुन

मैं पलटी तो दिल दहल उठा
पूछ रहे थे लाखों धड़
सिरों का अपने अता-पता
क्या कभी पाऊँगी मैं अपने
बेसिर पुरुषों से प्राण छुटा
शायद ही एक छिपाया हो
क्यूं शहर था मेरे पीछे पड़ा!


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में दिव्या माथुर की रचनाएँ