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कविता

पहचाना नहीं

सुरजन परोही


मैं,
छोड़ आया था 'माँ'
पर छूटी नहीं, तुम
जहाज-भर साथ रही
मैंने,
पहचाना नहीं -
सूरीनाम नदी तट पर
देश में
तुम मेरे साथ हो
अपनी परछाई में
तुम्हें ही देखता हूँ 'माँ'

 


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