hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जीवन भर का उजाला

सुरजन परोही


मिट्टी का सृष्टिकर्ता मैं
मेरी सृष्टिकर्ता मिट्टी
मैं मिट्टी को रौंदता
गढ़ता-रचता

मिट्टी मुझे
मेरे जीवन को।
मिट्टी मुझमें सनी है
मैं माटी से सना हूँ
जीवन-भर
दीया और घड़ा
बनाते हुए
जीवन के अंत में जाना
दीया - प्रकाश के लिए
तो
घड़ा - चिता की राख के लिए
माटी की देह
माटी से रचती है
माटी में रचती है
जीवन भर का उजाला
जो चिता के उजाले की
अंतिम लौ बन पाती है।

देह माटी भी
अंतिम दिन कुम्हार काल के हाथों
दीया बन जाती है
और वह देता है -
चिताग्नि, मुखाग्नि
जिसके उजाले में दिखता है - सत्य का उजाला

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में सुरजन परोही की रचनाएँ