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कविता

आजादी की गुलामी

सुरजन परोही


वह भी
एक देश था
यह भी एक देश है
कहीं गुलामी में आजादी
कहीं आजादी में गुलामी

खून की बूँद
पसीने की बूँद
आँसू की बूँद
पानी की बूँद
सबकी कीमत अलग है
जो दिखती नहीं, सिर्फ अदा होती है।

वह भी दीवाली की रात थी
यह भी दीवाली की रात है
कभी लक्ष्मी करती थी
घर-घर उजाला
पर आज,
उजाले में आग लगने का डर

 


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हिंदी समय में सुरजन परोही की रचनाएँ