हिंदी न आगे रखो न पीछे साथ-साथ रखो घर-बाहर-दफ्तर में मन के घर में, वाणी में परदेस में हर भाषा सीख पर अपनी भाषा मत भूल मातृभाषा नाश तो धर्म-जाति नाश
हिंदी समय में सुरजन परोही की रचनाएँ