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					रंग महल में दीप जले 
					झोंपड़ियों में अँधेरा है 
					 
					कोई दीप जलाए कोई सजाए 
					यह तो दुनिया का काम है 
					माल खजाना जिस के घर भरा 
					वह क्यों पूछे घी के क्या दाम है 
					वे खाकर तोंद फुलाए और 
					लाखों मुसीबत हमें घेरा है 
					 
					रंग महल में दीप जले 
					झोंपड़ियों में अँधेरा है 
					 
					सच्चा दीया तो अंदर जलता 
					जो पवित्र हृदय से जलाए 
					वही झोंपड़ी रंग महल कहलाती 
					जहाँ लक्ष्मी माँ अपना प्रकाश दिखाए 
					दुनिया चाहे हमें भिखारी कहे 
					वही सुख शांति का बसेरा है 
					 
					रंग महल में दीप जले 
					झोंपड़ियों में अँधेरा है 
					 
					आशा का नाता तोड़कर कर्म कर 
					सच्चे प्रेम और लगन से 
					मान सम्मान मिले न मिले 
					दाल रोटी हम खाएँ मगन से 
					दुनिया का दिखावा जिसे न आए 
					वही लक्ष्मी माँ का फेरा है 
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