1. सुख में तू भूल गया, देखा न पीर पराई।
नाव डुबे मझधार में, तब कौन तोहे पार लगाई।।
2. करम बुरा मानत नाहिं, बुद्धि हो गयी लाचार।
देखो दुनिया घूमके, सब गया बुद्धि से हार।।
3. आया है सो भोगो यहीं, मृत्यु लो यही कहलाए।
ऋषि मुनि योगी तपस्वी, सब यही चवरासी में आए।।
4. जात पात जनम से है नहीं, भगवान रचा समान।
मानव जाती में मानव है सभी, जाने दुनिया जहान।।
5. बिन भोगे कोई बचा नहीं, राजा हो या फकीर।
महादेव खुनखुन भागा है, बंधा है हाथो जनजीर।।
6. आत्मा पापी है या शरीर, कौन लिखा है यह उत्पात।
कौन नरक कौन स्वरग गया, बतावो हमें यह बात।।
7. तुल्सीदास महान कवि, धरती पर दूसरा ना कोई।
रत्न को रतना मिली, विधाता के लिख सब होई।।
8. बिना दो से दुनिया नहीं, देवी देवता भगवती भगवान।
सब ग्रंथन में लिखा है, लख चौरासी में प्रमाण।।
9. बच्चों में झंकार उठी, कर्मों के अनुसार।
माता पिता दोषी नहीं, मिल्ता वही है जो अधिकार।।
10. जात-पात कुछ भेद नहीं, ईश्वर जीव दोनो एक।
हम एक पिता के पुत्र हैं, मानव स्वरूप अनेक।।
11. लख चौरासी योनी सभी, दुख सुख दोनो रहे भोग।
जो जिस में जन्म लिया, पावे उसी में वह रोग।।
12. नरक स्वरग कोई जात नहीं, इस धरती पर भोगे सब कोई।
आवागवन के चक्कर यही, कोई हंसत कोई रहत है रोई।।
13. मन तो चंचल बना है, और फूल गया कुमलाए।
जीवन में अंधियारा छाया, तो भगवान कहाँ दिखाए।।
14. दुनिया में जो गरीब के गला काटे धन खाए।
नमक की तरह गल जावे, बिन मारे मर जाए।।
15. धन बल विद्या के नाम नहीं, देखले तू युग चार।
भक्तों के नाम अमर, देखे दुनिया संसार।।
16. ब्राह्मण के पुत्र शूद्र कैसे, सतयुग में देख विचार।
साधु संत ऋषि मुनि में, जात पात तू ना निहार।।
17. अंधकार में हम फसें हैं, ये कैसे है हमारा प्रीत।
गायत्री सनातन समाज में फूट अपस में बना न मीत।।
18. एक ही ब्रह्मा दुनियापर, घट-घट में रहे समाए।
कौन ब्रम्हा पंडित बना, किसके माथे शूद्र लिखाए।।
19. एक ही तत्व में मानव सभी, ईश्वर दोनो एक।
कौर तत्व से ब्राह्मण भये, धरम-करम से देख।।
20. ब्रम्हा मुख से वेद है, वेद ज्ञान ब्रम्हा ज्ञान।
ब्रम्हा मुख से ब्राह्मण, कौन लिखा यह प्रमाण।।
21. अपने करम पर ख्याल नहीं, देत भगवान के कसूर।
यही देंहिया जहर पी, महादेव बोले ऊ भागी जरूर।।
22. मन के बस में दुनिया पड़ी, ये कोई समझ न पाई।
कुकरम करके बइठल है, अब तो मौत गइल नियराई।।
23. कहे महादेव दुनिया भरमी, मौत है हमारे हाथ।
फिर आबे इस धर्ती पर, नया तक्दीर के साथ।।
24. कल्युग में खूब लुटो खाओ, घर-घर डंका मारो।
भगवान के नाम खूब लेओ, कैसे बैकुंठ सिधारो।।
25. अपने आगे कोई के चीन्हे ना, मन है बड़ा गरूर।
दुख पड़े पर रोदन करे, भगवान को देत कसूर।।
26. धर्ती सूरज के बीच जनम लिया, कौन जोनी में जाए।
साथ ही साथ भगवान चले, उसे को ई देख न पाए।।
27. एकही धरती पर रंग बहुत, गलत धंधा करे तमाम।
ताही बीच भगवान बैठा, देख रहा सब के काम।।
28. चारों ओर बुद्धि छटके, सब कुछ देख मन ललचाए।
बीच में भगवान देख रहा, सिर्फ अपना कलम डोलाए।।
29. समय क्या-क्या करत है, उनके हाथ में है लगाम।
महादेव भी हार गया, कर दिया उल्टा काम।।
30. पागल बना तो पागल-खाना को छोड़ के ना भाग।
वहीं मुक्ती स्वर्ग महल-अटाड़ी, वहीं मिली सरगम के राग।।
31. अत्मज्ञानी है सभी दुनियामें, ज्ञान कहीं ना दिखाए।
सब कोई भगवान बनगे, दुनियामें भक्त ना दिखाए।।
32. चैन के कदर है तुम्हे, और विद्या है तुम्हारे पास।
तुम्हारा बड़ा उपकार है, करो महादेव पर विश्वास।।
33. जात-पात अरु भेद-भाव, धन बल के अभिमान।
सच पूछो तो वह मानव, बना है पूरा सैतान।।
34. विष को अमृत समझा, तन से छूट गया है प्राण।
नया जन्म जब मिलेगा, महादेव को कौन सकेगा पहचान।।
35. लिखना पढ़ना करे सभी, तौपर ब्राह्मण पूजा जात।
पूजा तो भगवान की है, उसपर बैठ के करे बक्वाद।।
36. भगवान प्रकट भये सिंबोल में, वही के मूर्ति बन जात।
मूर्ति पूजा होत घर-घर में, महादेव के मानो बात।।
37. छल कपट से प्रभु मिले ना, घूस भरे से मिलत नाए।
शुद्ध विचार से दर्शन मिले, महादेव कहे यही है उपाए।।
38. जिंदगी देकर प्रभु, उसी में समाया है।
अपना अधिकार मांग रहा, सब पर हक जमाया है।।
39. अपना मन और विचार को, कोई ना सका सम्हाल।
अपने आप पर काबु ना रहा, महादेव क्यौं करे सवाल।।
40. क्या फैसनी के धर्म नहीं, प्रभु नहीं है उनके साथ।
विश्वास में प्रभु विराजे, दुनिया में कोई नहीं अनाथ।।
41. गला काट के धनवान भये, चले वह छाती उतान।
गदहा बैल बन के भोगो, यही है ओकर पहिचान।।
42. सुख दुख मनुष्य पशु प्रीत, सब है करम के हाथ।
प्रभु ऐसा विश्व रचा, पाप पुण्य है तुम्हारे साथ।।
43. मन सब के कल्युग बना, करम से हो गये हीन।
महादेव समझावे कोई ना समझे, सब के बुद्धि मलीन।।
44. पशु प्रीत दानव सभी, भला यह सब है कौन जात ।
महादेव ब्राह्मण से पूछा, डर गया सुन के ये बात।।
45. पाँच तत्व के शरीर, बन कर जब हो गया तैयार।
मल-मुत्र के मकान में, महादेव बैठ के करे विचार।।
46. भगवान सब के सामने खड़ा, अंधा बना है इंसान।
रोम-रोम में गूँज रहा, बिरले रहे उसे पहचान।।
47. महादेव कहे समझाए सभी, सुनलो हमारी बात।
जो धरम-करम भूला, अगले जनम में पछतात।।
48. दारु के नसा उतर जात है, धन के नसा न जाए।
दिन-रात जोड़ते रहिओ, तर जाने पर भी ना भुलाए।।
49. पागल ना बनो तुम, इस धरती पर मरता है न कोई।
आत्मा साफ करके देखो, आत्मा अमर सबके होई।।
50. मल-मुत्र से शरीर बना, फिर सुद्ध कैसे होई।
महादेव इस पर विचार करे, कौन पानी से इसे हम धोई।।
51. बिना धरती वृक्ष नहीं, जन्म बिना न कोई कर्म।
जल बिना कोई नाव नहीं, सत्य बिना ना कोई धर्म।।
52. ईश्वर जीवन अमर है, पाँच तत्व भी है अमर।
नरक स्वरग जाते कौन, महादेव पुछे कौन है जबर।।
53. कर्म जाल अपने बिनो, अपने ही खुद फँस जात।
दाँव-पेंच कुछ चली ना, बड़ा खिलाड़ी भी फँस जात।।
54. घर के बच्चा पानी बिन तड़पे, बाहर पिए पियावे दारू।
घर के संस्कार कैसे सुद्धरी, जब दूकान के द्वारे है उतारू।।
55. नाच रंग बहुत भाँती कीन, मंदिर सजावे न कोई।
अपने-अपने रंग-धँग में, नाचे खुद सब कोई।।
56. दो पन्ना वेद पढ़ के, सब मुर्खन के रहे भरमाए।
यही भ्रम में भर्गत रहे, पार उतारेवाला नरक में जाए।।
57. गुण-अवगुण सब में भरी, छ-कपट से भजे राम।
बीच उमर में नाव फँसी, जीभ पर ना आवे हरी नाम।।
58. हंस चुने हीरा-मोती, मनुष्य चुने खर पात।
बिन बुद्धि बहक गया, फँस गया अपने आप।।
59. मन पतंग उड़त आकाश में, जब लग डोर न कट जात।
जाए गिरे दूर कहीं, यह आँखी से ना लखात।।
60. पानी से अग्नि बनी, दुनिया में रोशनी पहुँचाए।
तरंग उठी जब आग में, वही पानी बुझावन जाए।।
61. थोड़ा समय निकालो तुम, भज ले तु राधे श्याम।
ना जाने किस पल में, निकल जाए तन से प्राण।।
62. पल-पल हरि नाम जपो, भगवान के शीस झुकाए।
गहरी नदिया वो पार करे, बिना नाव में बैठाए।।
63. विद्या है मूल धन, विद्या से बुद्धि होवे तेज।
उल्टा काम से मति भ्रष्ट, उसे पागल खाना में भेज।।
64. जिंदगी के देनेवाल, तुम्ही हो सहायक हमार।
ज्योति जलाकर अंधेरे में, दूर करो अंधकार।।
65. जाती-पाती के भेद नहीं, आत्मा का एक ही पहचान।
आदि सृष्टि में प्रभु रचा, रूप अनंत जान।।
66. संत महात्मा हार गये, ब्रम्हा शक्ति के पार न पाए।
बर्षों बन-बन में भटके, अंदर में प्रभु बैठ के मुस्काए।।
67. जात कौन दुनिया पर, ब्रम्हा है एक समान।
अनंत रूप में प्रभु बसे, धरम-करम ब्रम्हा ज्ञान।।
68. साधु-संत के जात नहीं, और ना योगि ऋषि-मुणि लोग।
औरों के नीच बतावे, बना दिया हिंदू कौम में रोग।।
69. दुनिया में अपना बल कुछ नहीं, प्रभु बल में बलवान।
अपना-अपनाकर रहे हैं, सबको तो जाना है सम्शान।।
70. प्रेम छोड़े से दुनिया मरे, भगवान के यही न्याए।
जीवन में कोई साथ न दिहें, धरती में सभी समाए।।
71. चंचल तन चित चोर बना, बुद्धि से लिया न काम।
आँखें होत अंधा बना, जिंदगी हो गया बेकाम।।
72. लाला खून सब के अंदर, मानव रूप में सभी लखात।
एक पिता के पुत्र हम सब, कहाँ है ऊँच-नीच की बात।।
73. जीव तो आता जाता है, करो सब कोई खुब विचार।
कौन जीव किस में गया, ऊँच-नीच के झगड़ा है बेकार।।
74. देंहिया ले मंदिर में बैठे, पंडित रहा मंत्र उचार।
मनवा तो राह पर बैठके, कनवा सुनके गैल स्वर्ग सिधार।।
75. मानव देंहिया कबर बना, लंबा है जीभिया हमार।
कौन साबुन से देंहिया साफ करूँ, ना मिली फीर उद्वार।।
76. मरके आत्मा भूत होईगे, परमात्मा होईगे सैतान।
ओझा के सितारा चमकल, घर-घर में कलयुग बौरान।।
77. विद्या सब से बड़ा धन है, जीवन में और दूसर नाए।
माता-पिता दुश्मन बना, जो बच्चों को नहीं दिया पढ़ाए।।
78. करम है मूल जगत में, चज्चल मन है अंधकार।
ऊँच-नीच के भरम में, जाए गिरे बीच मजधार।।
79. सोच मुसाफिर अपने दिल में, महादेव कहे, क्रोध से रहो दूर।
दुनिया किसी के होत नहीं, ये कहावत है मस्हूर।।
80. कमर बुरा करो नहीं, नहीं तो पीछे बैठ पछताए।
पहिले अपने मनके, अपने आपके खूब लेव सम्झाए।।
81. महादेव कहत सम्झाए सभी, मानो तू हमारी बात।
जा दिन प्राण निकल जाए, प्राणी हाथ पसारत जात।।
82. बिन माँगे कुछ ना मिली, ना मिले प्रभु के वर्दान।
चारो ओर दिखाई दे, चाहे सामने रहे भगवान।।
83. तंदुरस्ति है हाथ हमारे, जन्म-मरन देत भगवान।
महादेव कहे देंहिया भोगे, विष अमृत करे जो पान।।
84. दुनिया है एक पागल खाना, भूल गयो हरि नाम।
पाँच तत्व में हरि विराजे, ना खोजो स्वर्ग धाम।।
85. कर्म योगी भगवान बनाये, रंग रूप और शरीर।
जब दोष करे मानव, तो भोगना लिख है तकदीर।।
86. कुत्ता प्रेम करे रोटी से, मनुष्य धन से करे प्यार।
महादेव कहे जब मौत आवे, सब जैइहें हाथ पसार।।
87. चिंतन करो प्रभु के, चिंता से हो जाओगे बर्बाद।
धन-दौलत ना सर पर रखो, ना माया के बोझा लाद।।
88. राम सीता के रूप ना देखो, ना पूछो निराकार है की साकार।
सीखो हमे कैसे रहना है, नहीं तो जिंदगी है बेकार।।
89. जन्म है तो मरन भी, महादेव करता है याद।
मुक्ति मिलती है सभी को मर जाने के बाद।।
90. दुनिया में कोई कोना नहीं, जहाँ नरक के डर से छिप जाए।
बुरा कर्म से ना डर लो, तो ना भागो दुम दबाए।।
91. माँस रुधिर से देंहिया बना, उदर में है भगवान।
आत्मा कहो चाहे परमात्मा, दोनों में प्रभु के पहचान।।
92. मन तो प्रीत बना, हरि भजन से ना है प्यार।
मन में बुरा तरंग उठे, वही है नरक के द्वार।।
93. रीत बड़ा है या प्रीत, दोनो बिकने के है तैयार।
देख सभी हैरान हुवे, दुनिया गया है हार।।
94. भगवान सबको जन्म दिया, धरती दिया अजाद।
नेता गद्दी पर बैठ के, कर दिया इसे बर्बाद।।
95. हत्तया सबके पाप नहीं, एक दूसरे के है आहार।
मानव तू कौन है, कर खुद इस पर विचार।।
96. मनुष्य कर्म से प्रेत बने, देंहिया रहे दुख झेल।
यही जन्म में सब भोगो, प्रभु रचा है यह खेल।।
97. अच्छाइ धरो शरीर में, बुराइ के देव हटाई।
शरीर के फूल बनालो, भगवान के चरनो में देव चड़हाई।।
98. सदा ना वो वृक्ष रहा, जिस डाली पंछी दिया खोई।
उड़के पंछी देखता है, किस डाली पर बैठ के रोई।।
99. भक्ति से शक्ति मिले, देख के ना होना हैरान।
भवसागर में जब नाव डूबे, पार करे भगवान।।
100. माया में सारी दुनियाफसी, प्रभु के जपे न कोइ।
जा दिन मौत के फंदा पड़ी, देखो मरते हैं रोइ-रोइ।।
101. मन के तरंग शरीर में, बल बुद्धि से गया हार।
महादेव कैसे समझावे, जो कुछ है वही निहार।।
102. उत्तम कुल नीच कर्म, कहाँ गया तुम्हारा जात-पात।
महादेव कहे सब कर्म पर निर्भर, दुनिया के मारो लात।।
103. सुद्ध असुद्ध शरीर में भरा, बना पाखंडी के प्रचंड सागर।
उत्तम कुल नीच कहलावे, विष अमृत से भरा है गागर।।
104. चौरासी लाख योनी, रचा प्रभु विश्व में महान।
पशु अपने कर्म पर रहे, मनुष्य कर्म है पशु समान।।
105. अवगुण से देंहिया भरी, मन के कहा न करिहो कोइ।
महादेव कहे जब दुख घेरे, मन हँसे देंहिया रोइ।।
106. धन के पीछे दुनिया दौड़े, राजा रंक फकीर।
साधु संत तपो बल से, सभी बन गये अमीर।।
107. लाज सरम सब खोई के नकली रूप में करे ठिठोली।
माता पिता के बात न माने, दुनिया हँस के मारे टिभोली।।
108. फंस गए जंजीर में, पहुँच गए हम सब पाताल।
बुरा कर्म से पछतात है, खुद देखो बुराई का हाल।।
109. मानव अपना कर्म छोड़ दिया, हो गया पशु के समान।
चारो युग में मानव को देख के, देवता भी हुये हैरान।।
110. मन के दुख मन ही में रहे, हो न सका उद्धार।
ना जाने किस जन्म में, होगा महादेव के नइया पार।।
111. जोष में होश खो दिया, अपनी गलती देख न पाये।
नदिया में जब नाव डुबे, हाथ मल-मल पछताये।।
112. बुद्धि विद्या तुम में भरा, आओ बीच मैदान।
चाहे नीच जाति के हो, दुनिया करेगा सलाम।।
113. घर से पैर बाहर धरो, जब है तुम्हारे छाती में बार।
नीच जान के न पिछड़ो, महादेव तुम्हारे पीछे है तैयार।।
114. छल कपट अंदर भरा, दिखावे सब के मीठा चाल।
रंग-बिरंगी रूप बना कर, काटे अपने भाई के गाल।।
115. धन जोरत धनवान सभी, कभी न होवे संतोश।
माया जब खुब जोर लिया, गवाँ तब दिया सब होश।।
116. राम गये सबरी घर, जूठा फल लिहिन खाए।
छूत-अछूत कुछ नहीं देखा दिल में गया समाए।।
117. तत्व सब के समान है, ईश्वर जीव दोनो न एक।
अपने-अपने कर्म के फल, मनुष्य और पशु में देख।।
118. आदि सृष्टि में अमैथुनी, फिर मैथुनी सृष्टि रचा भगवान।
चारो वर्णों के देंहिया रची, रिस्ता बनी पिता पुत्र समान।।
119. माया बुद्धि बल सभी, बना रहे अच्छा हमेशा हमार।
चाहे बिगड़े, तंद्रुस्ति महादेव की, बुद्धि से होवें न लाचार।।
120. मनुष्य में ऊँच नीच कौन, कर लो ठीक से विचार।
कहीं जात-पात के भेद-भाव में भगवान बना चमार।।
121. लड़का के समान कोई धन नहीं, जामे प्रेम इज्जत समाए।
भगवान अैसी प्रकृति रचा, मोह माया में सब बंध जाए।।
122. आदि सृष्टि में सुद्र नहीं, हम हैं भगवान की संतान।
कौन करें थकी, इस नीचन के पिता बना भगवान।।
123. कर शन्तोष गरीब तू, ओहि धन जात तेरे साथ।
धनवान कनजूस के जिंदे, गिध नोच कर खात।।
124. खाए न पावे दाल-भात, धन की गठरी लिहिन बटोर।
भगवान के कभी याद न कीया, नरक में हाथ रहे जोर।।
125. बुरा कर्म से बुरा मनुष्य धर्म कर्म सब गये भूल।
बहन बेटी पहचान नहीं, यही है पाप के मूल।।
126. बाहर निकल कर नेता जी, प्यारे भाइयों, प्यारे भाइयों चिल्लाए।।
जीत कर कुरसी में चिपका, सूरीनाम देश को दिया डुबाए।।
127. सत्य-असत्य के राह न चीनहत, धार्मिक बनत सब कोई।
बिना पतवार के नाव में बैठे, अपने मरत है और रहे रोई।।
128. ओम् नाम सभी जपे, सब के अंदर लाल खून भर दीन।
ऊँच-नीच है नहीं, मूरख सब कुछ उल्टा लिख दीन।।
129. सत्य वचन कर्म और मन, मानव जीवन में है महान।
धर्म रूप लक्ष्मी भये, साधु संत के है यह ज्ञान।।
130. जीवन है अमृत फल, जीनका मौत कभी न होई।
कर्म है काट की देंहिया, कहीं समुद्र में न देत डुबोई।।
131. जवानी में तरंग उठे, मैला भया मन बुद्धि और ज्ञान।
अंधेरा में कुछ सूझत नहीं, बुढ़ापा में भये अपमान।।
132. स्त्री-पुरुष दो जाती में, प्रभु रचा है यह संसार।
आत्मा अदली-बदली होत है, महादेव के यही है विचार।।
133. आतमा नया शरीर से, बन बैठा है जिंदा भूत।
महादेव कहे मौत से पहले, भोग ले अपना करतूत।।
134. रो-रोकर मरे गरीब के बच्चे, मा बाप कमात दिन रात।
टोपीवाला मौज करे, अनपढ़ गंवार के रही यह बात।।
135. सुन बंदे हम मनुष्य सभी, उसे न देव गवाँय।
प्रचंड रूप से देंहिया बनी, महादेव बैठे पछताय।।
136. महादेव कहे भगवान की पूजा में न लगे कौड़ी दाम।
मन के फूल चढ़ाओ, प्रभु चर्णों में करो प्रणाम।।
137. राम अयोध्या छोड़ चले, सारी प्रजा रोवे।
राजा दशरथ प्राण छाड़ा, होनी होकर होवे।।
138. हवन यज्ञ में शक्ति भरी, भगवान की भक्ति महान।
चारो युग में परिक्षा होत, यह है सही प्रमान।।
139. सत्युग में सत धर्म तप, त्रेता में योग कर्म महान।
द्वापर में यज्ञ के साथ राम है, कली में नाम महान।।
140. ईश्वर अंश जीव एक है, दोनो है एक समान।
नरक द्वारा से हम जन्मे, देंह से हमे पहचान।।
141. भगवान एक ही दुनिया में, रहे पशु मनुष्य में जाए।
धर्म कैसे अलग है, महादेव के मन में न समाए।।
142. मन मतंग मानत नहीं, चाहे रोम-रोम बीक जाए।
अपने बड़ाई में सब डूबे, महादेव न सके समझाए।।
143. मान-अपमान समान है, बड़ा नाम है मान।
भगवान की भक्ति में, बड़ाई का पहचान।।
144. बड़े-बड़े सब चले गए, कहाँ है तेरा खयाल।
बड़ाई से पार न होइहो, फसों तू नदिया जाल।।
145. भगवान आये शरीर में, बसे रोम-रोम में जाए।
धर्म-कर्म दो राह दिये, महादेव खुनखुन रहे चेताए।।
146. प्रेत योनी एक प्रेत लिखा, कुछ तो करो विचार।
मनुष्य प्रेत बनता नहीं, हम उसे बनाकर करते तैयार।।
147. आदि सृष्टि से आज तक, मनुष्य लेता मनुष्य का जन्म।
कुकुर बिल्ली होत नहीं, ये तो है बड़ा रसीओ का भरम।।
148. मरे पर मनुष्य प्रेत बनत, तो धर्ती पर जगह न रह जात।
महादेव कहे जींदा प्रेत है, मनुष्य को मनुष्य खात।।
149. आत्मा कभी बदलता नहीं, प्रभुजी रचा है समान।
कर्म से सभी बन जात है, मनुष्य पशु के समान।।
150. पशु शरीर से पशु कहलात, आत्मा का है यह शरीर।
यही आत्मा से भोग रहे, चार दिन के लिखा तकदीर।।
151. धनवान, विद्वान नहीं गये, न गया है बलवान।
भक्ति भाव से मिले प्रभु, भाव के भूखा है भगवान।।
152. मृत्यु से ना डरो तुम, हम मुसाफिर हैं सब कोई।
महादेव कहे सुनो बात, दुनिया में घूमत सब कोई।।
153. यही आत्मा दुनियादेखी, कर्म बुरा तो काहे पछताए।
जैसी करनी वैसी भरनी, महादेव भी रहा कमाए।।
154. सब कुछ सुना है तू, और सब कुछ देखत चली जाए।
कहाँ तक महादेव समझावे, जिंदगी भी अब थका जाए।।
155. कर्म सभी भोगना है, यही जन्म में, दूसरा तो नाई।
नया जन्म के क्या पता, अच्छा करो अच्छा मिल जाई।।
156. भगवान बसे शरीर में दूर-दूर क्यों खोजे इंसान।
खोजत खोजत थक गए, अंदर में बैठा है भगवान।।
157. अजर अमर मृत्यु है नहीं, कर्म पर मृत्यु है अटल।
भगवान के यह नेम है महादेव कहे कौन सके बदल।।
158. आदि सृष्टि के आरंभ में भगवान रचा है यह जहान।
चौरासी योनी बना दिया, तो कैसे कर्म है प्रधान?
159. मनुष्य पशु आदि में, एकही भगवान रहे समाए।
मनुष्य में पशु है कौन, महादेव बार-बार रहे दिखाए।।
160. निराकार साकार के झगड़ा जो करे, है वो न समझदार।
नीचन की आदत कहाँ छुटी, उनको समझाना है बेकार।।
161. भगवान हर जगह महजूद है, सिर्फ मूर्ती के करे खंडन।
अपने को बड़ा पंडित कहलावे, लूटे गवाँरन के धन।।
162. मूर्ती रूपी तेरा शरीर है, जहाँ बसत है भगवान।
इसलिए मानव शरीर के, नीच और सुद्र न जान।।
163. काम क्रोध में जो जकड़ा, भगवान रहत उनसे दूर।
महादेव कहे जो अमृत त्यागे, वो तो चाटेगा धूर।।
164. हर वस्तु में प्रभु विराजे, अन्न जल सब में है हाजिर।
प्रभु शरीर के अंदर, तो खाना पिना किस के खातीर।।
165. विश्व रूप में है प्रभु, महादेव यही रहे बोल।
एक अंधा अंधकार में, प्रभु के न सके टटोल।।
166. फूलों में भगवान दिखावे, बकरी मारकर खाए।
ऐसा पंडित मिले कहाँ, जो धर्म के हत्या कराए।।
167. पित्र दिवस पर माता-पिता के ऊपर खुब सोना लादो।
बरष भर उसे देखने न जाओ, मरे तो खुब खाना खवाओ।।
168. प्रेत योनी में जात कौन, कौन है चुरैल भूत सैतान।
महादेव कहे समझो वही, जो देखात सकल जहान।।
169. कर्मजाल में अपने बझा, देखकर करत नहीं विचार।
नीति विरुद्ध चलत है, तनी अपने कर्म पर निहार।।
170. विद्या जिन के पास है, उनके बातों पर करो विचार।
जो गाल बजाना न जाने, जोगी की तरह बैठा मनमार।।
171. मनुष्य शरीर मुरत बने, प्रभु तो है निराकार।
खोजत रहे दुनियाभर, पागल है यह संसार।।
172. मंदिर, गिरजा, मस्जिद में, देखो प्रभु के चमतकार।
सब धर्मों में एक प्रभु, देखो उनका है कितना उपकार।।
173. घर के दीपक घर फूँक दिया, महादेव समझ न पाया।
मन तो डमाडोल है, उसे तूने बस में नहीं कर पाया।।
174. तीन वस्तु बहुत खराब है, महादेव देत जबाब।
मनुष्य को भिखारी बनावे, ईश्क, जूआ और शराब।।
175. दो अक्षर जान कर पंडित, घड़ी घंट रहे हिलाए।
मंत्र के सही अर्थ ना जाने, झूठ-पूठ दिया बतलाए।।
176. भलाई करे बुराई मिले, महादेव भलाई कर के पछतात।
विष अमृत ना बन सका, थोड़ा हमें समझाओ ब्राह्मण जात।।
177. दारू में नशा भक्ति में नशा, पर दोनों चले न साथ।
आँखे खोलो ऐ दारू वाले, नहीं मलते रहोगे फिर हाथ।।
178. जब अपना काम पूरा हुआ, अधूरा कुछ न रह जात।
तब मौत से काहे डरो, बेडर होकर उससे मिलाओ हाथ।।
179. अजर अमर बस शरीर में, पर शरीर है नासवान।
नरक स्वर्ग कौन जाता, महादेव को करादो यह ज्ञान।।
180. प्रभु चरित्र न जान सका, ऋषि मुनि संत सुजान।
महादेव पूछ रहा है, क्यों न बताता है भगवान।।
181. दौलत कमाने के लिये, बड़े-बड़े ग्रंथ की रचना होती है।
कर्मजाल बना भ्रमजाल, दिखाव तीलक, चंदन, धोती है।।
182. न बोतल खराब न दारू, और न खराब बनानेवाला।
पीनेवाला अगर गवाँर बना, खरब है जो दारू में मतवाला।।
183. माया रूप दुनियासजी, चुन-चुन कर बटोरा माल।
सर पर रख चौरासी में भटके, फँस गया अपने जाल।।
184. धर्म से नाम ना बनत, अच्छा काम से नाम बनजात।
दो हाथ दो पाँव से, न करो दुनियामें उतपात।।
185. प्रेम से सब कुछ मिलत है, प्रेम के है दो धार।
कुटिल प्रेम से हानी, सच्चा प्रेम से नैया पयार।।
186. बनाने वाला कम मिलते है, बिगाड़ने वाला बहुत तैयार।
उमर भर दुख भोगा, अब चोर गोली खिलाने को है तैयार।।
187. बड़ी मेहनत से भीख माँगे, क्यों ना यही मेहनत से करे काम।
जीवन अच्छा चलेगा, और तुम्हें कोई ना करेगा बदनाम।।
188. विद्या धन ना चोर लुटे, अग्नि में जले ना गंगा में बहजाए।
अच्छा कर्म तुम्हारे पास है, दुश्मनों से देत बचाए।।
189. जाकर मन भगवान में है, वही बना ब्रम्हा ज्ञानी।
जाकर मन चंचल है, माया करावत केवल हानी।।
190. दुनिया में राजा शांति चाहे, लड़ाई छगड़ा नाही।
वही अतमबंब, बंदुक बनावे, देखो है विचार सुद्ध नाही।।
191. जन्मदिन मुर्गा से मनाया, और बोतल से भरा गीलास।
जब पीकर बेहोश हुआ, तब बैठा जाकर परी के पास।।
192. कली अंस से पंडित भैइले, घर-घर चुगली करके चुगुलखोर।
जुट्ठा लबार है वह पंडित, लगावे जो घर बिगारने में जोर।।
193. छल कपट से जो होवे पंडित, घर-घर के नमक रहे चाट।
वेद के उलटा अर्थ बतावे, झूठाई से जीवन बीतल जात।।
194. ब्रम्हा ज्ञान जब मिले, तब ऋषि मुनि संत वो हो जात।
समझो उसी को ब्रम्हा मिला है, वही कर्म ब्राह्मण हो जात।।
195. दुनिया में बहुत हाथ है, खुदगर्जी के हाथ है बेकाम।
गरीब के सर पर तुम्हारा हाथ हो, है दीनानाथ के यह काम।।
196. राजा के बल सैना है, और प्रजा है सैना के समान।
जब प्रजा ही आँसु गिरावे, तब वो राज है समशान।।
197. दुनिया में हर इंशान को, को कुछ भी मिला है ज्ञान।
देने वाला सब गुरु है, महादेव कहे उसे सनमान।।
198. रहना है इस धर्ती पर, पालन करो कानून एवं देव का विधान।
न्याय से जीवन बिताओ, प्रेम ही है मनुष्य के पहचान।।
199. कहा-सुना माफ करो, महादेव के बुद्धि पर करो विचार।
गलती कदम से मौत है, मौत के बाद भी मिलता प्रभु के प्यार।।
200. छल छलिया पंडित बने, यज्ञ करत हर रोज।
दारू पीये मुर्गी डोकसी खाए, नरक में होगा खोज।।
201. अपने आप के समझ न पावे, घर-घर कथा सुनावे।
धोती कुरता पगड़ी बाँधे, जगत में खूब हँसी करावे।।
202. कलयुग में भोजन ठीक ना, और ठीक ना है भजन।
अहार विहार विचार उलटा, तो कैसे सफल मानव जनम।।
203. दूसरे के चाल चलन खूब निहारे, आपन छेद रहे ढाँक।
जौन ढाँके चाही, उ खुलल, दूसर तोके रहे झाँक।।
204. मौज में दुनियाडुबल, स्वर्ग के रास्ता होईगे गुम।
अंधकार में अंधा के क्या सूझे, मैला में रहे झूम।।
205. कलयुग रूप मैल से, घर-घर के चाल बिगड़ल जाए।
अपने आप को ना पहचाना, उनकी बीवी कैसे पहचान जाए।।
206. मौज से कोई न थकत है, उमिर बितल जात है।
समझने वाला के लात लगे, भक्ति से सब थक जात है।।
207. चाहे बावन यज्ञ करो, भगवान के पहचाना नहीं।
वामन रूप में आया, उसे कोई जाना नहीं।।
208. मनुष्य जो पशु कर्म करे, वही कर्म में देत जीवन बिताए।
मरे के बाद फिर मानस रूप रंग चेहरा से न परख पाए।।
209. मृत्यु हमारा दोस्त है, मुसीबत में वही है सहारा देने वाला।
जन्म से हमारा साथ है, अंतिम में वही है साथ देने वाला।।
210. अच्छा कर्म करो, तुम जिंदगी में मिले धन-धाम।
बाल-गोपाल पढ़े लिखें, महलों में करे विश्राम।।
211. चुनाव से पहिले घूस लेवे, चूसे मध लगाए लगाए।
बाद में जान ना पहचान, मियां बीवी सलाम, कहके देत हटाए।।
212. ब्राह्मण कुलभूषण भगत अलंकार और सिद्धांत शास्त्री।
नीच कर्म में डुबकी मारे, विध्वा समाज में घूमें फ्री।।
213. तुल्सीदास, कबीरदास विश्वामित्र, सुद्ध मुख से नाम लिया जाए।
गाली देवे मुख में कीड़ा पड़े, रोइ-रोइ नरक में जाए।।
214. सब है भोग योनी, मनुष्य योनी भोग और कर्म योनी रहे बताए।
हम करते तो गीर जाते, पशु करने लगे तो हहा-कार मच जाए।।
215. कोई करे कुछ, भोगे कुछ, और करे कोई, भोगे कोई।
प्रभु के लीला टाला नहीं जा सकता, होनी हो के होई।।
216. पुर्व जनम से पुनर जनम, मनुष मरे तो मनुष होई।
आम से नारियल होत नहीं, वही योनी में भोगे सब कोई।।
217. एकही मौत सभी का, दूजा मौत तो है नाए।
वृक्ष मनुष्य पशु, देखो बारी-बारी सब चल जाए।।
218. धर्म ग्रंथ अनेको हैं, उसे समुद्र में दिया डुबाए।
नक्ली अस्ली मीलाएके, अपने डूबे जन्ता के रहे डुबाए।।
219. न कोई किसी के मित्र न दुश्मन, समय पर सब कुछ होत।
लाभ उठाने वाला मित्र बनत, इंकार करने वाला दुश्मन होत।।
220. महादेव कोई के न रोके, बाजार जाओ चाहे जाओ दूकान।
जाने के सफर तैयार है, तो बाँधो अपना सामान।।
221. सूरीनाम समुद्र जल से ऊपर है, पर नेता रहे उसे डुबाए।
कोई मरा कोई मारा गया, कोई के जींदे मरघट दीन पहुँचाए।।
222. ज्ञानी ध्यानी प्रोफेसर, सूरीनाम में सब हैं बेकाम।
कितने टुकड़ों में देश बाँट लिया, गरीब सबके भरे दाम।।
223. कोई के ना कहो बुरा, आपन अच्छा करके तु देखाव।
आँख के अंधा तिलक लगावे, सर पर पगड़ी गले में दिखाव।।
224. भाव भक्ति कौन करे, यह दिखावे वाला चीज है नाए।
जिनको नीच गरीब समझो, उसी में बड़ा भक्त मिल जाए।।
225. थोड़ा भक्ति शक्ति जो है, उसे ना करो बरबाद।
थोड़ा जल गीराए के, भगवान को कर लो याद।।
226. यदि रावण बलवान ना होता, तब कोई ना लेता राम का नाम।
जितना बड़ा दुश्मन हो, उतना ही अच्छा मिलता है परिनाम।।
227. कलयुग के नाम बुरा, सबसे अच्छा है कलयुग के प्रभाव।
भक्ति-भाव बहुत सहज है, काम भी सहज में बनाव।।
228. ब्राह्मण पंडित के दोष नहीं, दोषी है जो सब में हामी भरता।
जब थोड़ा ताकत पास है, तब काहे ना तू ही लड़ता।।
229. बल बुद्धि और तेज तनु, हर जगह है हरि नाम।
विश्व में जहाँ कोई ना जा सके, वहाँ चलता प्रभु का काम।।
230. मृत्यु से कोई डरो ना, मानो महादेव की बात।
मृत्यु किसी के होत ना, और साथ रहत दिन रात।।
231. राधा श्याम कहाँ नहीं है, यह कहना मुरखताइ है।
हर योनी में वही बीराजे, हम ने उसे देख ना पाया है।।
232. नाम ऊँचा रखने के लिये, बनाओ मंदिर तीर्थ-घाट।
बदनामी से बचिहो नाहीं, चाहे दौलत चारो ओर देव बाँट।।
233. जाने वालों को रोकना नहीं शायद वही छण में मिले मुक्ति धाम।
ईधर मोह माया ने घेरा, उधर दल-दल में पड़ा है बेकाम।।
234. भगवान हमें एक हाथ पुन्य दिया और दूसरे में दिया पाप।
विश्व हमरी अच्छा खराब क्यों, करो इसका फैसला अपने आप।।
235. मनुष लालच में फँस कर, बिछावे दूसरों के लिये जाल।
उस जाल में खुद जा फँसता, यही है इन धुर्तन के हाल।।
236. झूठ बोले चोरी करे, लंबा चौड़ा करे बात।
उलटा-पुलटा मंत्र पढ़के, महा पंडित बनजात।।
237. छोटा हैं सभी दुनिया में, बड़ा नहीं करे जो अभिमान।
अभिमानी को तोड़ने वाला है वो परम पिता भगवान।।
238. आत्मा परमात्मा के बीच, अपनी बुद्धि ना दौड़ा पाये।
उनका काम कैसे समझोगे, जो अपनी माया से सब को बनाये।।
239. दुनिया में सब कुछ पाकर भी, रह जायेगा वह धूल समान।
महादेव कहे बिना प्रभु भजे, मानो विष पीकर देना है जान।।
240. भाई बहन बच्चे, थोड़ा रास्ता बदला है खराब नहीं।
जब बच्चे परेशान करते है, तो पंडित के जवाब नहीं।।
241. शन्तोष दया धिरज, ये सब के सीमायें होती हैं।
सीमा पार न करना, नहीं तो नास्तिक में गिन्ती होती है।।
242. इस धरती पर दानव मानव, जो भी कोई आया है।
अपने-अपने तरीके से, सभी ने अपना जाल बिछाया है।।
243. एक दिन ऐसा आयेगा, वह दिन मेरे नजरों से दूर नहीं।
ना कुछ रहा ना कुछ रहेगा, यहाँ पर कुछ भी भरपूर नहीं।।
244. भगवान की महिमा देखो, धरती गगन और क्या कीन।
जल के भीतर धातु बनावे, कैसी बनी अजब मसीन।।
245. विज्ञान इतना आगे बढ़ा, रंग भरत दिन रात।
भगवान के प्रेरणा है, उनके शक्ति बिन बदलता नहीं हालात।।
246. मनुष शरीर अनमोल है, खरिदने वाला भगवान है।
दाम के साथ काम करवावे, वही के हाथ तीर कमान है।।
247. मानव मन अती चंचल है, पशु मन अति धीर।
समय पर जब वह गिरता, पशु से नीचे अति गंभीर।।
248. रोम-रोम में भगवान बसे, सभी देवता है मेरे पास।
उनके नाम से हवन करके, अग्नि से भेजे अकाश।।
249. अपना मन शुध नहीं, वायु के शुध करत सब कोई।
बिन वायु कोई जाता नहीं, बेधर्मी भी जीवित होई।।
250. करम किया जोष में, धोके में हो गई बुराई।
जाना था स्वर्ग में, नरक में पहुँचे जाई।।
251. दुनिया करनी भोगत है, कोई नहीं है सुनवार।
जो जैसे किया है, फल चखने के हो जावे तैयार।।
252. एकही जल दुनिया पर, जल बरसत चहु ओर।
कहाँ शुध कहाँ अशुध, किधर है तीरथ की ओर।।
253. काम क्रोध लोभ मोह में, दुनिया फँसी है आज।
अहंकारी देख ना पावे, तोड़ दिया प्रभु गरम मिजाज।।
254. दुनिया के चाल चलन में, महादेव हो गया हैरान।
यहाँ से नाता तोड़कर, चलो अब प्रभु के धाम।।
255. चंचल मन अच्छा काम, सभी बुरा काम में चलते आगे।
मन के लगाम ठीक नहीं, तो उल्टा सिधा भागे।।
256. प्रभु के हम बालक सभी, उनका प्रेम दया है उदार।
उन्ही के हाथ में है जीवन, हमारे हाथ में जीत-हार।।
257. करम ही तेरा धन है, करम ही बही देत बेताए।
करम ही तेरा स्वर्ग हे, करम ही नरक ले जाए।।
258. हम सब ससुराल में हैं, संवरिया है दीनानाथ।
सास ससुर के सेवा करना, पिता के ना छोड़ना हाथ।।
259. गरीब भिखारी सारी दुनिया, शीश झुकाने में है कल्याण।
ठोकर खाने से बचोगे, एक दिन उदय होगा भान।।
260. जन्मदिन मानव नित मनाते रहे, प्रभू के जन्मदिन नहीं आता।
प्रभु उसी में समाया है, इसी लिए वो नहीं मीट पाता।।
261. मानव लीला दानव लिला, श्मसान छेत्र दिया बनाए।
राम लीला कृष्ण लीला, कलयुग में मनुष रहे दिखलाए।।
262. दुनिया में चारों ओर जाल बीछा, महादेव यही बताता है।
जाल से बच के रहना, लालच करने वाला खुद फँस जाता है।।
263. अपना-अपना कहत मर गैले, मरघट भी न अपना हुआ।
मरघट के द्वार पर सभी रोवे, आँसु भी सपना हुआ।।
264. दूसरे के राह दिखावे, आपन धोती कुत्ता से नोचवावे।
गंदी नाली में गोता लगावे, दूसरे के चले राह बतावे।।
265. पाँच तत्व से दुनिया बनी, इसी से ही बना है शरीर।
दुनिया में सब कुछ पाँच तत्व से बना, ये तत्व हैं गंभीर।।
266. विश्व में एक नाम प्रभु के, कोटीन नाम देवतन के लहराई।
एक से निकला सब, एक दिन सब एकही में फिर मील जाई।।
267. मौत को ढूढ़ने महादेव चला, पर मौत को देख न पाया।
मौत तो निश्चय कर आती है, करोड़ों पहरेदार उसे रोक न पाया।।
268. धरा ग्रंथ अनेको छापकर, महादेव धरम-धरम चिल्लाए।
नकली पंथ जबरन आकर, हमरे घर में घुस जाए।।
269. जो नाम भगवान के, उसे ठीक तरह से कोई लेता नहीं।
मछली माँस बगल में दारू, ठीक से अब तक कोई चेता नहीं।।
270. मौज के रंग में दुनिया डूबल, स्वर्ग-स्वर्ग चिल्लाए।
आँख के अंधा देख न पावे, सर पर मौत मड़राए।।
271. शरीर के लिये सब कुछ होत है, शरीर जात शमसान।
आत्मा आता जाता रहता, शरीर मिलत न सबको एक समान।।
272. सारे विश्व में पवित्र धरती को, मनुष ने दुषित कर दिया।
लूट-खसूट खून खराबा कर, धरती को हमने बदल दिया।।
273. खेलाड़ी के आगे दाँव पेंच कुछ काम नहीं आता है।
भगवान सबसे बड़ा खेलाड़ी, उससे कोई पार न पाता है।।
274. साड़ी सलवार धोती कुरता, मनुष्य के सोभा बढ़ता है।
वही जब मुरदा के ऊपर हो तो कफन बन जाता है।।
275. जिंदगी और मौत के बच, स्वाँस के खेल निराला है।
स्वाँस ही आत्मा परमात्मा है, जो हर ताला की चाभी है।।
276. सत्युग में हमारे स्वाँसा में, त्रेता ऊदर में रही छाई।
द्वापर है भुजावों में, कल्युग हमेशा सर पर रहे मड़राए।।
277. खट्टा मीठा स्वाद जीभ चखे, जाने दुनिया के हर इंसान।
सिर्फ स्वाद लेता रहा, भूल गया कि जाना है कबरस्थान।।
278. पशु कर्म से धर्ती, सदा निर्मल ही रहता है भाई।
मानव तो बवरा गया, उल्टा-सीधा कर्म में मन लगाए।।
279. करम भोग धरम भोग, ये दो जगह है सुनो लगाकर ध्यान।
न्याय करके भगवान, देता हर एक को डंड या ईनाम।।
280. कल्युग में केवल पाप होत, नरक में जगह ना रही जाए।
दूसरा नरक के नेह धराइगे, भगवान दूसरा नरक रहे बनाए।।
281. थोड़े दिन में देखियो, स्वर्ग के नाम निशान मीट जाई।
अच्छा काम कोई करत नही, तो कैसे स्वर्ग में जाई।।
282. दुनिया में दो ही चीज है, अच्छा बुरा के करो यकीन।
अच्छा वायु ऊपर ले जाई, बुरा सब धर्ती में होगा लीन।।
283. हरिश्चंद्र सीबी दधीची, बाल्मिक तुल्सीदास ये महान हुआ।
महादेव कहे इनका नाम खुब लेत है, कोई ना उसके समान हुआ।।
284. जो स्वयं सुद्र बना है, उससे बड़ा कोई ज्ञानी नाए।
जो दूसरों के सूद्र बनावे, उससे बड़ा कोई नीच नाए।।
285. तीन नंबर ब्राह्मण लिया, दो नंबर क्षत्री के दीन।
एक नंबर वाला खेती करे, नीच यह सब नंबर नीच करदीन।।
286. ब्राह्मण क्षत्री वैश कोई नहीं, सब के सब हैं सुद्र के जात।
सब नीचन के काम करे, शराबी जुआरी और करे उत्पात।।
287. दुनिया भर के सुद्र राज चलावत, ऊँच जाती चाटे धूल।
लाठी उसके और भैंस उसका, महादेव कर लिया है कबूल।।
288. मुरख दुनिया लुट कर, बदल दिया है विधान।
ना रही बाँस ना बजी बाँसी, विधान के मिटा नाम निशान।।
289. देश के दुश्मन भाग ना पावे, मारो पेंच अर्राए।
बीच सभा में ऐसे गीरे, जैसे कटता पेड़ भहराए।।
290. छोटा आदमी बात बड़ा, आदमी बना रहे छोटा।
महादेव कहे जीधर पानी बहे, नाव के रूख उसी ओर होता।।
291. धन बल विद्या शक्ति भक्ति, अपने जगह सब बड़ा है।
जहाँ खींचा तानी होता है, वहाँ एक दूसरे के सर पर खड़ा है।।
292. नैया पार लगाने के लिये, प्रभु के लंबा हाथ है।
तुम्हारे पास उसे आना ना पड़ता, दीनों को पर लगाता दीनानाथ है।।
293. दुनिया चले दुनिया बदले, दुनिया में सब बदलते हैं।
कसूर सब का है, जो दुनिया के साथ-साथ चलते हैं।।
294. जैसे जीसका चालस है, वैसे है उसका हाल।
महादेव कहे विचार के, वैसे ही होगा उसका काल।।
295. भलाई-बुराई के फल यही जनम में सब रहे भोग।
महादेव कहे कि हो ना हो ये अगले जनम के संजोग।।
296. सारा सूरीनाम एक तरफ, महादेव खड़ा अकेला।
जब तक राम शरीर में है, लक्षमन के पक्का डकेला।।
297. ठग विद्या से दुनिया बनी, छल कपट से भरा शरीर।
माया उनके लूट लिया, धर्ती पर गीरो गंभीर।।
298. मेरी नैया करवट लेलिया, अब तो वह डूबता ही जायेगा।
भगवान के नजरों में ये पापी, अब बच ना पायेगा।।
299. पशु मनुष्य के खात है, और मनुष पशु के खात।
पशु पशु के खात है, महादेव कहे ये जीव कहाँ जात।।
300. निराकार से नर-आकार हुआ, वही नर-आकार कहलाये साकार।
चिंता से चिंतन करना सीखो, नहीं तो यह जनम बेकार।।
301. तेरे दर्शण के आश लगाए बैठे हैं, महादेव कविकार।
कली के मल नाश करो, मन दर्पण में हो शुद्ध विचार।।
302. पाप पुन्य जो किये हैं हम, तोल तोल के भोगे के पड़ी।
घूस रिस्वत से काम न चली, करम ताड़े से न तड़ी।।
303. धनी धन जोर-जोर खजाना, गाड़ी हाथ जोड़-जोड़।
राम धन के समान और नहीं, पैसा जोड़ रखो चाहे करोड़।।
304. कोई औरत के साथ रहना हो, तो ना पूछो उनकर जात।
चाहे जितना उमर हो, हो बुढिया कुरूप चाहे जात कुजात।।
305. आँसु पोछनेवाला साथ हो, तो रोने में बड़ा मजा आता है।
जो भुखा मरता हो, उसे झूर भात खाने में मजा आता है।।
306. कलयुग में नेम धरम कानून, न्याय कुछ भी अटल नहीं।
जब चाहे तोड़े बनावे, राजा के हाथ से कुछ बचल नाहीं।।
307. मन ही तेरा मंदिर है, मन ही में बैठा है वह भगवान।
मन ही तोरा मोक्ष द्वार है, मन ही में होत जीवन संग्राम।।
308. भारत में बहत्तरों धरम हैं, रच-रच के ब्राह्मण बनाए।
चलत फिरत एकहु नाही, महादेव अपने धरम के क्या बताए।।
309. अपने आप के समझ न पावे, दूसरे के राह दिखावे।
घर में औरत ताना मारे, बाहर जाके हँसी उड़ावे।।
310. मंदिर जाने से फायदा यही, प्रभु में ध्यान लग जात।
उतना देर बुराई से बचियो, मन वचन से शुद्ध होइ जात।।
311. मौत इतना भयानक है, मानो पाप पुन्य के जहाजी है।
मजा लेत-लेत नाव डूबा, कहाँ रहा धरम संस्कृती समाज।।
312. शरीर ना खरिदा बेचा जाता, दाम कौन लगायेगा।
वह अनमोल खजाना है, जो दिया वही उठा कर ले जायेगा।।
313. जानवर अपना रसम रिवाज भूला नहीं, वो है अटल पुजारी।
पालतु जानवर काराघर में बंद, वही है हुकुम के पुजारी।।
314. महादेव कहे चेत रे भाई, मरते समय कोई न आई काम।
पानी देने वाला कोई ना रही, जब तन से छूटी प्राण।।
315. जिस देश में प्रजा नहीं, किस की निकली तब जनाजा।
महादेव के बात मानो, अंधा के देश में कन्वा राजा।।
316. विद्या सब कोई पढ़ो, प्रभू दीन सब को पूरा अधिकार।
जो पढ़त वही महंत होते, जो ना पढ़े वो रहा बन गवाँर।।
317. विद्या पढ़ो और पढ़ाओ, करो मिल कर विद्या के प्रचार।
जो विद्या से पिछड़ गया, वो दुनिया से गया हार।।
318. सुद्र के कोई नंबर नहीं, रूप रंग सभी समान।
चारो वर्गों के नेम में, होता है करम ही प्रधान।।
319. करोड़ो शरीर इस धर्ती पर, एक-एक दिन कटते जाए।
महादेव सोच न पावे, ये जीव निकल कर कहाँ जाए।।
320. विद्या देखी विद्या को, मुरख देखी कुकर्म।
धनवान देखी धन को, धर्मात्मा देखी धर्म।।
321. आधा दिन में राम, आधी रात में कृष्ण बंसी वाला।
आये दोनो प्रेम बस, भक्तों के भार उतारने वाला।।
322. ब्रम्हा ज्ञान से ब्राह्मण भये, दुनिया के देखे समान।
वरण चार में जो ब्रम्हा ज्ञानी, वही के ब्राह्मण मान।।
323. युग बदले मानव बदले, प्रभु रहे सदा एक समान।
यही बला बदली में, महादेव अपने करम पर है हैरान।।
324. मनुष बारह रासी में भोगे, कोई ना होत भेंड़ बक्री गाय।
मनुष बन के सब भोगो, मरे के बाद फिर मनुष बन के आय।।
325. मृत्यु मुझे लेने आती है, लाश छोड़ के चला जात।
जो मरा उसे पता नहीं चलता, हम सब छाती पीट-पीट चिल्लात।।
326. मृत्यु से कोई डरो नहीं, मानो महादेव की बात।
वह तुम्हारा दोस्त है, हर जनम में होत मुलाकात।।
327. विश्व के हर कोने में, मौत करता तुम्हारा इंतजार।
मौत ही के प्रेरणा से, दुख दूर होता है तुम्हार।।
328. मनुष कर्म करता, जैसे कर्म वैसे ही मिलता फल।
न्यायकारी परमात्मा, उनका न्याय को ना सक्ता अदल-बदल।।
329. अपने-अपने ढंग तरिके से, घर-घर प्रभु के नाम लेत।
कोई ना जाने कौन उसमें, जिनको प्रभु दर्शण देत।।
330. ज्यादा हरि किर्तन भजन, होत दारू की दूकान में।
उसे बुरा करम से बचने के, हरि के नाम आता है जबान में।।
331. शराबी जुआरी से नफरत ना कर, प्रेम के बरखा बरसाना।
उसके ठोकर ना लगने दे, डूबने से उसे बचाना।।
332. दुनिया रचने के लिए प्रभु, चौरासी लाख योनी क्यों बनाया।
ऊँच-नीच लड़ाई झगड़ा से, बचने के लिये राह बताया।।
333. बड़े-बड़े ग्रंथों में, महादेव के केवल यही मिला है प्रमाण।
औरत धन और धर्ती के लड़ाई, और कहीं श्राप कहीं वर्दान।।
334. भगवान के कोई जानत नाही, और नाही कोई उसे माने।
मनुष अपने को पहचानत नाही, महादेव के व्यर्थ है समझाने।।
335. भगवान के हाथ में ना सब सौंप दो, नहीं तो जीना है बेकार।
कर्म से आत्म उत्थान होत, कर्म ही से है जीत और हार।।
336. भगवान के याद करो चाहे नहीं, उसे कोई फरक नहीं पड़ता।
फरक पड़ता है हमें और तुम्हें, जो अपने जीवन से है लड़ता।।
337. समय पाए दुनिया हँसा, समय आया तो रोना पड़ा।
आँसु में भगवान छुपा, समय है सब से बड़ा।।
338. मनुष तो पशु से गिरा है, नियम अहार बिहार से।
प्रभु को भी समिल करना चाहा, अपने विचार से।।
339. बहुत रावण पैदा होत हैं, राम के नाम देत धहड़ाय।
रावण के काम करे और रावण के नाम से नफरत है भाय।।
340. जब भगवान नियम बनाया, कौन कितना पुन्य करे कितना पाप।
तब तो मनुष दोषी नहीं, लिखा हुआ होता अपने आप।।
341. मनुष जनम बार बार मिले, कि अपना कर्म पर करो विचार।
लंगड़ा लूला अंधा भिखारी, यही जीवन में तु निहार।।
342. हम पशु के रक्षा करते, मारकर, कि पशु योनी से हो छुटकारा।
योनी तो बदलता नहीं, हमारे पेट भरने के लिये आता है दुबारा।।
343. मांस मदिरा पान कर, ब्राह्मण चड़ कर बैटे व्यास।
पुन्य के बदले पाप मिले, जो धर्म के करत उप्हास।।
344. मनुष पशु के रक्षा करत, और पशु रक्षा करत हमार।
इसीलिये प्रभु ऐसी योनी रची, कि एक दूजे के है आहार।।
345. हमारा जन्म लंका में हुआ, अयोध्या में जाना है मुहाल।
अगर भभिषन बन जाओ, तो क्या कर सके हमारा काल।।
346. काँटों के बीच पला बड़ा हुआ, और बना होनहार।
लेकिन गुलाब जैसे बन ना सका, तो जीना है धिक्कार।।
347. भगवान सब को जिंदा भेजकर, सुंदर रचा है संसार।
पशुओं के बलिदान चढ़ाकर उलटा धर्म करते हैं प्रचार।।
348. प्रभु मानव के समान रचा, समान भोजन समान अधिकार।
यह वृथा प्रपंच है, समान होकर भी सब है बेकार।।
349. चाहे जिस डगर से गुजरो, गरीब ही गरीब मिलेगा।
अमीर मिले बिरला कोई, कभी वो फूल झोपड़ियों में खिलेगा।।
350. जगत अंधकारमय है, सूरज की ज्योति मिलती नहीं।
जब हम अंध बन कर बैठे हैं, तो ज्योति दिखाये न कभी।।
351. सत्य के जमाना है नहीं, पर असत्य भी ना बोलो।
काम बने हानी ना हो, ऐसी तरीका टटोलो।।
352. बिन माँगे मिले नहीं, प्यासा मर जाये बिन पानी।
मन के हाल बोल ना सका, दुनिया छोड़ जाये प्राणी।।
353. अयोध्या में प्रभु भक्ति, तब राम बनको जाए।
जब लंका जल गई, तब रामजी करत सहाए।।
354. अखंड दीप जलाए क्या हुआ, मन के दीप न जलाया।
आदेश उपदेश संदेश होते हुवे सब मिथ्या कहलाया।।
355. पैरों को सुद्र न कहो, प्रेम से पैरों पर माला चढ़ावो।
जो तूमहारे लिये मल मुत्र कीचड़ में रहा, उसे ऊपर उठाओ।।
356. जाती बनाने वाला मसीन नहीं है, यन्त्र मंत्र तन्त्र मिला नाए।
करम ही एक मसीन है, करदो तैयार ब्राह्मण बनाए-बनाए।।
357. नंगा शरीर और नंगा बदन, प्रभु भक्ति है बेकार।
अपने देह के प्रदर्शन न करो, जैसे करता है संसार।।
358. दुनिया एक फुल है, उसका सुगंद है भगवान।
गमक रहा सब के शरीर में, हर प्राणी में एक समान।।
359. यह शरीर अशुद्ध नहीं, यही मंदिर में बिराजे भगवान।
अशुद्ध बनाता है मनुष खुद, जहाँ ना हो पूजा का स्थान।।
360. बार-बार नरक में जन्मे, नरक ही में जीवन देत बिताए।
नरक से वह क्यों डरे, जिनके नरक के आदत पड़ जाए।।
361. सत्युग में ना दुख था ना पाप, तो यज्ञ काहे के होत।
सत्य धर्म पर अटल सभी, तो अवतार काहे को होत।।
362. धर्म एक पंथ बहुत, भगवान मिलत ना हेरे।
मन मलीन तो देखे कैसे, काम क्रोध लोभ मोह घेरे।।
363. खुद बचो दूसरों को बचाओ, यह है महादेव के विचार।
सैतान तुम्हें बँकायेगा, उनसे रहना तुम होश्यार।।
364. धर्मबीर और धर्म पुरुष आप हैं, मैं तो हूँ अनपढ़ गँवार।
प्रभु से शिक्षा भिक्षा दिक्षा के लिये, दिया हाथ पसार।।
365. दुनिया में क्या करना, सब जानत है पर मानत नाए।
ऋषि मुनिण ना समझा सके, तो महादेव क्या कर पाए।।
366. हम सब नाच रहे हैं, भगवान है नचाने वाला।
नाच-गाना सब उसी का, वही है बाजा बजाने वाला।।
367. धन बटोड़ भर लिया खजाना, हो गया हजारो बीघा जमीन।
जमीन पैसा यहीं रह जाएगा, साथ ना जात एक कोपीन।।
368. धर्म-अधर्म दो मार्ग हैं, हम खुद उसे बनाते हैं।
चलने वाले हमीं हैं, नगर स्वर्ग हमी जाते हैं।।
369. इसे मृत्यु लोक कहो, चाहे दुनिया के माया जाल।
एक दिन सब को जाना है, महादेव तू अपने को संभाल।।
370. एक फंदा है जाल भी बिछा हुआ, मधू भरा प्याला भी है।
चलने के रास्ता साफ है, बहुत बँहकाने वाले भी हैं।।
371. जीनदा में मानव, अच्छा बुरा के फर्क कुछ ना जाना।
मरने के बाद बेकार है, मंत्र वो उपदेश से समझाना।।
372. चाहे सोने के महल में सूतो, चाहे सोने के बर्तन में पीओ पानी।
चाल ही जब कुचाल है, चाहे हजार करो तु कुर्बानी।।
373. मा अपने बच्चे को छाती के दूध छुड़ा कर बोतल में पीलाती है।
बड़ा होकर बोतल छोड़ता नहीं, धीरे-धीरे होटल पहुँच जाता है।।
374. मित्र बनावत देर लगत है, दुश्मन पल भर में बन जात।
महादेव जीवन भर अमृत ढूँढ़ा, पल भर में विष मिल जात।।
375. सब भार धर्ती सहे, हिमालय पर्बत के होता है नाम।
जो हमेशा सब कुछ सहता आया, उसे नाम से क्या काम।।
376. आना जाना तो लगा है, कहाँ से आये कहाँ जाना है।
दुनिया के बाहर जाओ, या भीतर ही ठिकाना है।।
377. जो कोई यहाँ आता है, हाथ मलकर चल जाता है।
भगवान को भी ना पाता, यहीं सब छोड़कर चल जाता है।।
378. आत्मा पापी नरक गया, से पाप आत्मा कहते लोग।
कोई ना जाने कौन नरक स्वरग में भोगे अपना-अपना भोग।।
379. धन के अहंकार में, कभी याद नहीं आया उन्हें भगवान।
मंदिर और यज्ञ स्थलों में, दान देकर बनाते हैं नाम।।
380. किसी मनुष्य को चिजरी से जान लेना या उसे पहचाना है।
यह तो कहीं लिखा नहीं होता, दिल में जो छिपा उसे न जाना है।।
381. गरीब के छोटे गलती गहरा दाग है, वह मिटाया नहीं जाता।
समाज के अंदर वो चिंगारी आग बनकर भड़क जाता है।।
382. मनुष चरित्र कोई ना जाना, जब तिर्या चरित्र कोई न जान सका।
चले है प्रभु के चरित्र जानने, प्रभु के कौन पहचान सका।।
383. मा-बाप के खाते पीते, और उसी को गाली देते ठुकराते हैं।
औलाद धन-दौलत पाकर, उसी मा-बाप को ठोकर लगाते हैं।।
384. बाहर उपदेश देते, माथे तिलक चंदन खुब लगाते हैं।
अपने घर में उजाला न किया, बाहर ज्वालामुखी बन जाते हैं।।
385. जात देर न लागे, पात गिरत देर न लगे, दोनो नष्ट हो जात।
जो जात-पात के नष्ट न मानत, वही नास्तिक कहलात।।
386. प्रभु सब कुछ रचा कुच बचा नहीं, उसी में रहकर बनाया है।
अनू-अनू में रहनेवाले को अनुमान कोई न लगा पाया है।।
387. भगवान तुम्हें सब कुछ दिया, भाव के भुखा है भगवान।
पान फूल प्रसाद चढ़ा कर, बना लो जीवन महान।।
388. सीधा पानी दान दक्षिणा गौ दान मिले, व्यास पर ऊँचा स्थान।
यही लालच से सब ब्राह्मण बनत, चाहे बिलाए जात यज्ञमान।।
389. भोग योनी भोग है कोई भी संभोग से बचा नहीं।
ब्रम्हाचारी करमचारी, कोई उस बिमारी से बचा नहीं।।
390. अच्छा मौत सब कोई चाहे, चलते फिरते मौत आ जाये।
कमबख्त मौत ऐसी चीज है, इंतजार करना उसे ना आया।।
391. दीन हीन गरीब के कोई न सुने जब वह चिल्लाता है।
धन के मालिक एक बार चिल्लाए, दुनिया नंगे पाँव दौड़ी आता है।।
392. कोई जाल नहीं बिछाता है, मनुष खुद जाकर उसमें फँस जाता है।
जाल तो फँसाने के लिये है, तो खुद फँस कर क्यों चिल्लाता है।।
393. अच्छा काम करने के लिए मनुष्य समय बना नहीं पाता है।
जब मौत सामने हो, तो जाने के लिये समय बन जाता है।।
394. अरब खरब तक धन जोड़ा, हरि नाम गया भुलाए।
मौत जब द्वार पर आवे, तब धन दौलत ना करत सहाए।।
395. बुराइ करो तो यज्ञ करो, पाप दोष सब मीटा डालो।
खुब दान देके भिखारी बनो, पंडित को सेठ बना डालो।।
396. दुनिया में सभी परिवार है, सब को अपना मान।
आत्मा परमात्मा को ना देखा, धर्म कर्म में छिपा भगवान।।
397. मन ही तेरा मंदिर है, मन ही है भगवान।
मन ही तेरा फूलों की बगीचा, मन ही है तेरा ज्ञान।।
398. किसी के झूठा पाखंडी ना कहो, ना समझो उन्हें गंवार।
प्रभु से जो नाता जोड़ लिया, उसी का है ऊँचा विचार।।
399. एक ही सहाए राम भजन, जिसके भजे मुसाफिर तर जाए।
जाते समय जब मौत को देखा, महादेव हाथ मल-मल पछताए।।
400. तर्क-वितर्क होत जहाँ है, वहाँ भाव भक्ति कोसो दूर।
प्रेम श्रद्धा प्यार से प्रभु मिले, जीवन कृतार्थ हो भरपूर।।
401. दुनिया में बहुत बुराई है, पर दारू जुवा पहिले त्याग।
सर्वनाश करिहें साथी तमाशा देखियें लगा कर घर में आग।।
402. होलिका बुरी थी जल गयी, प्रभु कृपा से बचा भक्त प्रहलाद।
बुरी थी होली तो क्यों शुभ होली, कहना था शुभ प्रहलाद।।
403. मन चंचल मनु भया, सम्य रूप जीके वही सत्रूपा।
मनु सत्रूपा सभी बनो, उत्तम संतान से दूर हो भवकुपा।।
404. हर घंटो में नियम है, नियम में बंधा है संसार।
जो नियम से बिचलित हो, उसका ना हो नैया परा।।
405. घर ही में सब कुछ भरा, तो बाहर पैर ना निकालो।
घर से बाहर जाने से पहले, घरही में बुद्धी तेज बना लो।।
406. चुरैल भूत प्रेत सैतान, ये सब रहे तुम्हारे आस-पास।
मौका मिलते ही टूट पड़े, मित्र ही नोच खैइहें तुम्हारा मास।।
407. सुम्मत पशुवो में मिलत, कुमत मनुष के है ज्ञान।
जहाँ सुमत तहाँ सम्पति नाना, कुमति तो विपति निधान।।
408. धर्ती पर अच्छा चाल चलो, अकड़ना है कुचाल।
मा की कोख मत उजाड़ो, मरने के बाद क्या होगा हाल।।
409. जब गन्दि नाली के किड़े में, परमात्मा खुद विराजमान है।
तो मास खाने वाले मनुष में, क्यों नहीं भगवान है।।
410. भगवान ना टेम से ना नेम से, शुद्ध आत्मा से करो सब काम।
श्रद्ध भक्ति अंदर में हो, तो प्रेम के भूखा है भगवान।।
411. सब के मन लगा है धन की गठरी में, जो रहा दिखाए।
बिन धन कुछ होत नहीं खुन-खुन बोले ना लीपत जाव।।
412. तुल्सीदास बहुत कुछ कहा, पूरा रामायण कर दिया तैयार।
यदी सब कोई उस मार्ग पर चले, यो नैइया हो जाए पार।।
413. सत्य तप है झूठ पाप, मा-बाप के बात ना माना।
महादेव वही बात बताया, मिलेगा वही जब गुरु द्वार है जाना।।
414. बिना कुदे फाने खोदे-खोदे, पढ़ने-लिखने से कुछ नहीं मिलता है।
हाथ-गोड़ में तेल लगाए बैठो, सब हाँ करने से तक्दिर न बदलता है।।
415. मृत्यु मुझे लेने आती है, मुझे पता तक नहीं चल्ता।
जब और कोई जाता है, उसे देख कर अपने अनुभव होने लगता।।
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