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कविता

पानी

सुनीता जैन


उसने बेटे से कहा,
'बेटा, घड़े में पानी नहीं,'
बेटा जल्दी में था, उसने सुना नहीं।

उसने बहू से कहा,
'बहू, एक गिलास पानी।'
बहू ने सुना, पर रुकी नहीं।

उसने पोते से कहा,
'मुन्ने, देना तो पानी।'
पोता देखता रहा टी.वी., हिला नहीं।

उसने नौकर से कहा
'रामू... पानी।'
नौकर बाहर लपका, उसको सब्जी लानी थी।

यों घटने लगा घर के नलों में,
घड़ों में, आँख में पानी।
घटते-घटते इतना घटा
कि घट फूट गया।

अब वह पूरी की पूरी पानी में थी
जैसे कि एक नदी,
गंगा या गंगा जैसी।

लेकिन उसकी प्यास
बुझी नहीं, वैसी थी -
क्योंकि वह प्यासी थी।
क्योंकि वह प्यासी थी!

 


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