उसने अपनी भाषा को किया नरम, दूब सा - उसने अपनी हथेली को किया फूल सा - उसने छुपा लिया अपने ही भीतर अपना सारा असला - वह आँखों में लाई आँज कर एक प्रतिसंसार गहरा - वह स्त्री थी प्रेम में, खिल रही थी काँटो भरी बेल में।
हिंदी समय में सुनीता जैन की रचनाएँ