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कविता

काँटो भरी बेल में

सुनीता जैन


उसने अपनी भाषा को किया नरम,
दूब सा -

उसने अपनी हथेली को किया
फूल सा -

उसने छुपा लिया अपने ही भीतर
अपना सारा असला -
वह आँखों में लाई आँज कर
एक प्रतिसंसार गहरा -

वह स्त्री थी प्रेम में,
खिल रही थी काँटो भरी बेल में।

 


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