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कविता

सचमुच

सुनीता जैन


जब से वह प्रेम से जुड़ी है
तब से काँच पे खड़ी है।

न चले बनता है न बिन चले ही।

यदि आपने किया है प्रेम किसी से
तो कृपया उसको इतना बतला दें
कि वह क्या करे -

काँच को बचा ले किरच किरच होने से
या बचा ले पैर अपने

जब से वह प्रेम से जुड़ी है
सचमुच, सचमुच डरी है!

 


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