अ+ अ-
|
आग थी
तेज थी
जल रहा था काबा
भागम भाग थी
लोग उलीच रहे थे
भर भर कर बर्तन बाल्टी
वह उड़ रही थी
आर पार लपटों के
झुलसते पंखों में
झुलस जाने से बचती
वह ला रही थी चोंच भर पानी
'क्या होगा तेरे
इस एक बूँद पानी से'
डपटा सभी ने
'शायद कुछ भी नहीं',
वह बोली,
'लेकिन रोज कयामत के
पूछा जाएगा मुझसे कि
जब जल रहा था काबा
तब तू क्या कर रही थी
तो मैं सिर झुकाए
कह पाऊँगी,
'जितना दिया आपने, आका
मैं भरसक उतना कर रही थी
हाथ और पाँव नहीं थे तो भी
यह चोंच बड़ी नियामत थी
रह रह उसको ही भर रही थी।
|
|