hindisamay head


अ+ अ-

कविता

अकाल में सारस

केदारनाथ सिंह


तीन बजे दिन में
आ गए वे
जब वे आए
किसी ने सोचा तक नहीं था
कि ऐसे भी आ सकते हैं सारस

एक के बाद एक
वे झुंड के झुंड
धीरे-धीरे आए
धीरे-धीरे वे छा गए
सारे आसमान में
धीरे-धीरे उनके क्रेंकार से भर गया
सारा का सारा शहर

वे देर तक करते रहे
शहर की परिक्रमा
देर तक छतों और बारजों पर
उनके डैनों से झरती रही
धान की सूखी
पत्तियों की गंध

अचानक
एक बुढ़िया ने उन्हें देखा
जरूर-जरूर
वे पानी की तलाश में आए हैं
उसने सोचा

वह रसोई में गई
और आँगन के बीचोबीच
लाकर रख दिया
एक जल-भरा कटोरा

लेकिन सारस
उसी तरह करते रहे
शहर की परिक्रमा
न तो उन्होंने बुढ़िया को देखा
न जल भर कटोरे को

सारसों को तो पता तक नहीं था
कि नीचे रहते हैं लोग
जो उन्हें कहते हैं सारस

पानी को खोजते
दूर-देसावर से आए थे वे

सो, उन्होंने गर्दन उठाई
एक बार पीछे की ओर देखा
न जाने क्या था उस निगाह में
दया कि घृणा
पर एक बार जाते-जाते
उन्होंने शहर की ओर मुड़कर
देखा जरूर

फिर हवा में
अपने डैने पीटते हुए
दूरियों में धीरे-धीरे
खो गए सारस

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में केदारनाथ सिंह की रचनाएँ