प्रचंड धूप में इतने दिनों बाद (कितने दिनों बाद ?) मैंने ट्रेन की खिड़की से देखे कँटीली झाड़ियों पर पीले-पीले फल 'झरबेर हैं' - मैंने अपनी स्मृति को कुरेदा और कहीं गहरे एक बहुत पुराने काँटे ने फिर मुझे छेदा
हिंदी समय में केदारनाथ सिंह की रचनाएँ