जब सुबह-सुबह सूरज जलाता है अपना स्टोव और आदमी अपनी बीड़ी तो कितना अजब है कि दोनों को यह पता नहीं होता कि असल में यह एक बेचैन-सी कोशिश है उस संवाद को फिर से शुरू करने की जो एक शाम चलते-चलते सदियों पहले कहीं बीच रस्ते में टूट गया था।
हिंदी समय में जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ