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कविता

लयभंग
केदारनाथ सिंह


जब सुबह-सुबह सूरज
जलाता है अपना स्टोव
और आदमी अपनी बीड़ी
तो कितना अजब है कि दोनों को
यह पता नहीं होता
कि असल में यह एक बेचैन-सी कोशिश है
उस संवाद को फिर से शुरू करने की
जो एक शाम चलते-चलते
सदियों पहले कहीं बीच रस्ते में
टूट गया था।

 


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हिंदी समय में केदारनाथ सिंह की रचनाएँ