hindisamay head


अ+ अ-

कविता

यह पृथ्वी रहेगी

केदारनाथ सिंह


मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में
यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में
रहते हैं दीमक
जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अंदर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी जबान

और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी
और एक सुबह मैं उठूँगा
मैं उठूँगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूँगा
मैं उठूँगा और चल दूँगा उससे मिलने
जिससे वादा है
कि मिलूँगा।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में केदारनाथ सिंह की रचनाएँ