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कविता

समुद्र के उस पार...

असीमा भट्ट


अभी अभी जो गया है
अपना हाथ तुम्हारे हाथ से खींच कर...
तुम्हें रोता हुआ
बिलकुल अकेला छोड़कर
जानता था
जी नहीं पाओगी
अकेली !
नहीं रह पाओगी दुनिया के इस विशाल भीड़ भरे समुद्र में
तुम रोती हुई बार बार यही पूछती हो
कहाँ गलती हुई
क्या भूल की तुमने...

कुछ भी नहीं
जाने वाले कभी वजह नहीं बताया करते।
जिन्हें जाना होता है वो किसी भी बहाने से
जाते हैं।
जैसे जाना ही हो उनकी नियति
बस इतना जान लो
तुमने कोई
गलती नहीं की
गलती थी तो सिर्फ इतनी कि
तुमने प्यार करने की भूल की।

नहीं ! नहीं !
अब और मत रोना
मत बुलाना उसे अपने प्यार का वास्ता देकर
'जो नहीं जानते वफा क्या है'
तुम उदास होकर खुद को मत देना दंड
दीवारों से गले लगकर रोते हुए अपने आँसू जाया मत करना...
तुम जैसी पता नहीं कितनी हैं
इस वक्त भी जो मेरी इन पंक्तियों को पढ़ रही हो और रो रही हो
मैं जानती हूँ
अच्छी तरह जानती हूँ
कितनी ठगी सी रह जाती है मासूम प्रेमिकाएँ
जब टूटता है उनका प्यार किसी प्यारे खिलौने सा

टूट जाने दो !
तुम मत टूटना
हरगिज नहीं
यही तो वो चाहते हैं
कि
तुम काट लो अपनी कलाई की नसें
और खाकर नींद की गोलियाँ
खत्म कर लो अपने आपको
तुम्हारी कमजोरी वो जानते हैं
इसीलिए तो तुम्हें कमजोर बनाते हैं
सबसे नाजुक पल में वो तुम पर वार करते हैं
तोड़ देते हैं तुम्हें
अंदर/बाहर से
उस वक्त जब तुम्हे उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है

भूल कर सब कुछ और खिलो
फूलों की की तरह
पहले से ज्यादा सुंदर सजो
नाज ओ अदा से इतराओ
महको/चहको/नाचो/गाओ
उल्लास मनाओ
अपने होने का
अपने सुंदर होने का
हँसो, खूब हँसो और खुश रहो

तुम्हारे दुश्मन सबसे ज्यादा तुम्हारी खुशी से आतंकित होते हैं

अकेली नहीं हो तुम
और भी कई हैं तुम जैसी
जो समुद्र के उस पार ढूँढ़ रही हैं अपना प्राचीन प्यार
सात पालों की नाव पर दूर मल्लाहों के साथ
आज रात कोई गा रहा है...

 


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