'जाय दे' कहकर तुमने विभीषण को जाने दिया 'आय दे' कहकर तुमने जयचंद को आने दिया 'छोड़ दे' कहकर अब तुम छुड़ाना चाह रहे जकड़ी हुई अपनी गरदन को।
हिंदी समय में अभिमन्यु अनत की रचनाएँ