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कविता

समानता

अभिमन्यु अनत


मों-स्वाजी के समंदर से
चार कदम आगे
देख आया मैं
चुनाव के दौरान
दिए गए वायदे पूरे होते
गरीब धनी के भेद को मिटते
गरीब तो नहीं मिला वहाँ

पर धनी सैलानियों को बालू पर पसरे
धूप में नंगे देख आया
अपने ही गाँव के
जमनी चाची के बच्चों जैसे
जमनी चाची के बच्चे पर अब
नंगे नहीं रहते
सैलानियों की मेहबानी को वे
अब दिन-रात पहने होते हैं।

 


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हिंदी समय में अभिमन्यु अनत की रचनाएँ