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कविता

मेरे महबूब

अभिमन्यु अनत


इस शहर में
हवा जहर लिये होती है
उम्मीदें टूटती हैं
विधवा की चूड़ियों की तरह
इस शहर में
गर्भपात लिये बहती है नहर
चुनाव बाद की घड़ियों की तरह
वायदे भुलाए जाते हैं।

 


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हिंदी समय में अभिमन्यु अनत की रचनाएँ