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कविता

परवल गाथा

प्रकाश उदय


आजु सट्टी में पहिल पहिल लउकल परोरा, हरियाइ गइल बा
देख परवर नयन से लखत चहुँओर, हरियाइ गइल बा

अभी कुछ दिन त टुकुर-टुकुर ताके के बा
फेरू कबो-कबो भाव-ताव थाहे के बा
अब तनी-तनी परस सरस होखे लागल
अब तुरहो जियत तनी जोखे लागल

अब तियना से भुजिया ले पहुँचल परोरा पटियाइ गइल बा
अब गवना बियाह तिलक थम्हलस परोरा पटियाइ गइल बा

अब अलुआ में परवर भुलावे के ना
अब परवर में अलुवा मिलावे के बा
अब देसी चलानी में बाँटे के
पिया पकल पनसोह तनी छाँटे के

अब लायक बड़कवन के नइखे परोरा ससताइ गइल बा
देख गाँजल बा सट्टी में बोरा के बोरा ससताइ गइल बा

जबले पाव भर के भावे बिकात रहुए
तले बड़िए सवाद से खवात रहुए
अब भावे बिकाता पसेरी के
का दो के खाई खा-खा के छेरी के

अछा, कुछ दिन में रेयर हो जाई परोरा, पटुआइ गइल बा
तब फेरू तनी फेयर हो जाई परोरा, पटुआइ गइल बा

1. सट्टी - सब्जी मंडी/बाजार
2. परोरा - परवल
3. तुरहो जियत - थोड़ा बढ़ा कर तौलना
4. जोखना - तौलना
5. तियना - रसेदार
6. पटियाना - पट जाना
7. चलानी - पड़ोस
8. पकल पनसोह - पका हुआ और पानी भरा
9. छेरना - पतली दस्त होना
10. पटुआ जाना - कड़ा हो जाना

 


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