hindisamay head


अ+ अ-

कविता

स्मृति

ब्रजेंद्र त्रिपाठी


इस महानगर में
ऐसा वक्त कहाँ मिल पाता है
जब आप स्मृति के कपाट खोल
उसमें से होकर
अपने अतीत में पहुँच जाएँ
अतीत, जो बीत चुका है
लेकिन जिसकी परछाइयाँ
अब भी आपको
अपनी धूपछाँहीं आभा से भर देती हैं।

और स्मृति के कपाट जब खुले हों
तो समय का अंतराल मिट जाता है
तब अतीत और वर्तमान
अलग-अलग दो कालखंड नहीं होते
बल्कि वे एक नैरंतर्य में होते हैं।

स्मृति एक टाइम मशीन है
जिसके माध्यम से आप अतीत में जा सकते हैं
और एक बार पुनः जी सकते हैं
उसे।

जब भी मैं अकेला होता हूँ
बहुत ही सहज होता है
मेरे लिए पहुँच जाना
अपने बचपन के दिनों में
नानी के पास
जो आपने सिरहाने
कुछ-न-कुछ जरूर रखे रहती थीं
मेरे लिए - लकठा, खुरमा या कि कोई और खाद्य पदार्थ

अब भी पहुँच जाता हूँ मैं
अपने गाँव की नदी के
बलुट्टे तट पर
और देखता हूँ स्वयं को
जाड़े की धूप में
गरम-गरम बालू पर लेटे हुए।
या कि चाँदनी रात में
छोटी-सी डोंगी ले


2.

अपने लँगोटिया मित्र के साथ
जल विहार करते हुए।

इसी स्मृति के सहारे
पहुँच जाता हूँ अपने किशोर दिनों में\
वह पहला-पहला प्यार
एक दुर्निवार आकर्षण
लोगों के ताने सुनता
उनके व्यंग्य-बाण झेलता
बार-बार पहुँच जाता था उसी गली में
उसी दर पर।
और बिछुड़ने की पीड़ा क्या होती है
यह भी तो जाना था
उन्हीं दिनों।

स्मृति
मेरे लिए एक चोर दरवाजा है
अपने गुजरे हुए समय में
लौटने का
एक माध्यम है
अतीत और वर्तमान के मध्य
जीवंत संवाद का।

 


End Text   End Text    End Text