अ+ अ-
|
लो फिर मैं छटपटाने लगा
और हुआ मैं कहने को उतावला
वह मैं कैसे कहूँ
जो मैं कहना चाहता हूँ
खोजता हूँ शब्द मैं अपनी त्वचा से
आँखों से, नाक से
पेट से, दिल से
नब्ज में आए शब्द
मिलते नहीं कहीं से।
खोजता हूँ धीरे-धीरे अपने को
जैसे कोई खोल रहा हूँ
जकड़ा हुआ दरवाजा
बहुत दिनों से बंद
जोर लगाता हूँ जितना
उतना ही वह नहीं खुलता।
शब्द के अलावा कोई विकल्प न होने में
उन्हीं-उन्हीं शब्दों में लौटता हूँ
पर वे सभी मेरे मतलब के शब्द नहीं होते
हैरान हो कर
निढाल पड़ जाता हूँ
आत्मा मुस्कुराती है मेरी असफलता पर
मैं उसके सामने हाथ जोड़ लेता हूँ।
|
|