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कविता

साँझ का आकाश

एकांत श्रीवास्तव


साँझ का आकाश
गेरू के रंग का

उड़े सारस
हिलीं फुनगियाँ
धवल काँस-फूलों पर गिर गया गुलाल
नाव के पाल-सा
साँझ का आकाश
जोर-जोर
हिलता हुआ हवा में

दिया बाती के बेर
मजूर के पंख-सा
धरती की थकी हुई देह पर फैला हुआ

दुःस्वप्नों के तीर से
बिंधी हुई नींद
राख के रंग का साँझ का आकाश।

 


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