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					यह तय थाउन्हें नहीं चाहिए थी
 तुम्हारी बेबाकी
 तुम्हारी स्वतंत्रता,
 तुम्हारा गुरूर,
 और तुम्हारा स्वाभिमान,
 
 तुम सीखती रही छाया पकड़ना,
 तुम बनाती रही रेत के कमजोर घरोंदे,
 तुम सजती रही उनकी ही सौंपी बेड़ियों से,
 
 वे माँगते रहे समझौते,
 वे चाहते रहे कमिटमेंट,
 वे चुराते रहे उपलब्धियाँ,
 वे बनाते रहे दीवारें,
 
 तुम बदलती रही हर पल उस ट्रेन में जिसके
 चालक बदलते रहे सुबह, दोपहर और साँझ,
 
 उन्हें चाहिए थे तुम्हारे आँसू
 उन्हें चाहिए थी तुम्हारी बेबसी
 उन्हें चाहिए थे तुम्हारा झुका सिर
 उन्हें चाहिए था तुम्हारा डर,
 
 वहाँ एक पगडंडी
 कर रही है इंतजार नए कदमों का
 तय करो स्त्री आगे दोराहा है...
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