hindisamay head


अ+ अ-

कविता

हमें बक्श दो मनु, हम नहीं हैं तुम्हारे वंशज

अंजू शर्मा


सोचती हूँ मुक्ति पा ही लूँ
अपने नाम के पीछे लगे इन दो अक्षरों से
जिनका अक्सर स्वागत किया जाता है
माथे पर पड़ी कुछ आड़ी रेखाओं से,

जड़ों से उखड़ कर
अलग अलग दिशाओं में
गए मेरे पूर्वज
तिनके तिनके जमा कर
घोंसला जमाने की जुगत में
कभी नहीं ढो पाए मनु की समझदारी

मेरी रगों में दौड़ता उनका लहू
नहीं बना मेरे लिए पश्चाताप का कारण
जन्मना तिलक के वाहक
त्रिशंकु से लटकते रहे वर्णों के मध्य
समय समय पर तराजू और तलवार को थामते
वे अक्सर बदलते रहे ब्रह्मा के अस्पर्श्य पाँव में,

सदा मनु की विरासत नकारते हुए
वे नहीं तय कर पाए
जन्म और कर्म के बीच की दूरी का
अवांछित सफर

कर्म से कबीर और रैदास बने
मेरे परिजनों के लिए
क्षीण होती तिलक की लालिमा या
फीके पड़ते जनेऊ का रंग
नहीं छू पाए चिंता का वाजिब स्तर

हाशिए पर गए जनेऊ और शिखा
नहीं कर पाए कभी
दो जून की रोजी का प्रबंध,
क्योंकि वर्णों की चक्की से नहीं निकलता है
जून भर अनाज
निकलती है तो केवल
केवल लानतें,
शर्म से झुके सर,
बेवजह हताशा और
अवसाद

बोझ बनते प्रतीक चिह्नों को
नकारते और
अनकिे कृत्यों का परिणाम भोगते
केवल और केवल कर्मों पर आधारित
उनके कल और आज ने
सदा ही प्रतिध्वनित किया
हमें बक्श दो मनु, हम नहीं हैं तुम्हारे वंशज...

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में अंजू शर्मा की रचनाएँ