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कविता

ईश्वर का सुयश (अरियल छंद में)

मुंशी रहमान खान


जय जय अविनाशी, घट घट वासी,
         जगत उदासी, सुयश तोर श्रुति माहिं बखाना।
                  जयति जयति जय कृपानिधाना।। टेक।।
जय जय ईश्‍वर, तुम परमेश्‍वर,
                 हो जगदीश्‍वर, सब उर बास ठिकाना।
त्रैलोक उजागर, सब गुण आगर,
                 करुणासागर, नाम तोर नाशैं अघ नाना।
                          जयति जयति जय कृपानिधाना।। 1

रावण कुंभकरण भट भारी, कंसादिक रहे अत्याचारी,
तिन कहं मार गरद कर डारी, नाश कीन्‍ह उन कर अभिमाना।
बलि को तुम पाताल पठायो, हिरनाकुश को गर्व नशायो,
कृपा कीन्‍ह प्रहलाद बचायो, जपत अखंड नाम भगवाना।।
                          जयति जयति जय कृपानिधाना।। 2
डूबत तुम गजराज बचायो, चीर द्रोपदी केर बढा़यो,
रंक सुदामा नृपति बनायो, दीन्‍हें कंचन महल खजाना।
कीर पढा़वति गणिका तारयो, अजामिल से खल बहु उद्धार यो,
दुष्‍ट ताड़का को तुम मारयो, धनु पर साध बिना फर बाना।।
                          जयति जयति जय कृपानिधाना।। 3
नेति नेति कहि वेद पुकारैं, शेष शारदा यश कहि हारैं,
कोटिन बरस मुनी तन जारैं, मरम तोर तिनहूँ नहीं जाना।
मैं मतिमंद कहूँ केहि भांती, कबहुँ न यश कहि जीभ अघाती,
नाम तुम्‍हार जुडा़वति छाती, प्रेम सहित सुमिरै रहमाना।।
                          जयति जयति जय कृपानिधाना।। 4

 

 


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