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कविता

धर्म शिक्षा ।। 3 ।।

मुंशी रहमान खान


दोहा

जो करना है काल तोहि करले आज सुजान।
आज करै सो अ‍बहिं कर पल में चल जाँय प्रान।। 1
दीन्‍हों ईश्‍वर ने तुम्‍हें धन बल बुधि अरु धर्म।
धन बल की शोभा यही निशिदिन करौ सत्‍कर्म।। 2
जो सच्‍चे धर्मज्ञ तुम खरचहु धन बल आज।
खोल मदर्सह गाँव में देहु सीख सिरताज।। 3
सीखें विद्या बालगण होय धर्म का ज्ञान।
धर्म ज्ञान बिनु जगत महं नहिं चीन्‍हें भगवान।। 4
बिनु चीन्‍हें भगवान के कहाँ होय कल्‍यान।
कल्‍यान बिना संसार में होय धर्म की हान।। 5
धर्महीन नर जगत महं बिचरें पशु समान।
खावें डंडा खलन के तबहुँ न उपजै ज्ञान।। 6
हे वासी सुरिनाम के भारत की संतान।
खर्चहु धन लो धरम को मरे न होय बिहान।। 7
देखहु विद्या की चमक यूरुप अरु जापान।
धनी धर्म आरूढ़ वे अरु यशवंत जहान।। 8
देख चलहुँ ता चाल पर हे भारति विद्वान।
अवशहिं चढ़ि हौ शिखर पर यह शिक्षा रहमान।। 9

 


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