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जौ से भरी थीं हमारे चोगों की जेबें
न रसोई चलानी थी न हड़ताली शिविर
हम अपने ही देश में अचानक घुसे फुर्ती से
खाइयों के पीछे भिखारी के पास हमारा अगुआ पुजारी पड़ा हुआ है
मुश्किल से चल पाने वाले लोगों की तादाद बढ़ रही थी
हम हर दिन देखते थे नई रणनीति
बर्छे लिए बागडोर और सवार के बीच से रास्ता बनाते थे
और पदसेना में पशुओं की भगदड़ मची,
फिर लौट गए बाड़ों में जहाँ घुड़सवार सेना को ठूँसा जाना था
तब तक जब तक विनिगर हिल पर गुप्त सभा नहीं हुई
तोपों की ओर हँसिए लहराने वाले हजारों लोगों को कतारों में मारा गया
पहाड़ी की ढलान लज्जित थी हमारे खून की लहर में लथपथ
हमें दफनाया उन्होंने कफन या ताबूत के बिना और अगस्त में
हमारी कब्र में जौ उगे
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