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					मेरे पिता ने घोड़ा हल चलायाउनके कंधे तने हुए पाल जैसे झुक जाते थे
 मूठ और खाँचे के बीच घोड़ा तन जाता
 उनकी लगातार चलती चलती जुबान सुनकर
 
 वह विशेषज्ञ थे
 विंग बनाकर चमकदार स्टील जुराब फिट करते थे
 मिट्टी को लुढ़का देते थे बिना तोड़े
 घोड़ा गाड़ी पर एक बार उठा कर
 
 बागडोर सँभालते और मेहनतकश टोली
 फिर से मुड़ जाती जमीन की ओर
 उनकी आँख सिकुड़ कर जमीन पर झुक जाती
 हल रेखा का सही अनुमान लगाते हुए
 
 मैंने उनके कील वाले रास्ते में ठोकर खाई
 कभी कभार गिरा चमकीली मिट्टी पर
 कभी कभी मुझे अपनी पीठ पर बिठाया उन्होंने
 घिसट कर चलते हुए नीचे ऊँचे मार्ग पर
 
 मैं चाहता था बड़ा होकर हल चलाना
 एक आँख बंद करके, हाथ कस लेना
 मैंने बस अनुगमन किया
 खेत के आसपास उनकी व्यापक छत्रछाया में
 
 मैं बेकार, ठोकर खाकर गिरने वाला था,
 हमेशा बकबक करने वाला
 लेकिन आज मेरे पिता हैं जो लड़खड़ा कर चलते हैं
 मेरे पीछे और दूर नहीं जा पाएँगे
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