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कविता

मनुष्यता

अमरसिंह रमण


दो शब्‍द बहुत हैं विश्‍व के सार में
मनुष्‍यता है अगर मनुष्‍य के प्‍यार में

अखंड प्‍यार हो, मनुष्‍य का मनुष्‍य से
मनुष्‍य हम बनें सभी यही हमारा लक्ष्‍य हो
मनुष्‍य के लिए ना कभी मनुष्‍य कोई भक्ष्‍य हो
इस देश में सभी से प्रेम भाव चाहिए
ना जाति पांति धर्म का दुराव चाहिए
जाति धर्म तो प्रसिद्ध है मनुष्‍य के प्रेम का

जिस जिगर में रम रही है मनुष्‍यता
कर रही है उनको प्रसिद्ध विश्‍व में
मनुष्‍य प्रेम बढ़ता है निरंतर जहाँ-जहाँ
हर मनुष्‍य करें प्रेम ज्ञान-मान धर्म हो
दो शब्‍द बहुत हैं विश्‍व के सार में
मनुष्‍यता रहे अगर मनुष्‍य के प्‍यार में।

 


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