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कविता

मध्य में ही टूटता संवाद देखा

माधव कौशिक


मध्य में ही टूटता
संवाद देखा
युद्ध देखा,
युद्ध का उन्माद देखा।

सरहदों पर मसखरी
होने लगी है
राजधानी आजकल
रोने लगी है
क्या पता, क्या हो गया है,
वक्त को
नर्मो-नाजुक मोम सा
फौलाद देखा।

बन गए सब लोग
सतरंगे खिलौने
देखने में लग रहे
फिर भी घिनौने।

जिंदगी की है यही
अब सार्थकता
दूरदर्शन पर नया
उत्पाद देखा।

 


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