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हमारे पलकों पर घुँघरू
और शब्दों की प्राणांतक घुटन,
और मैं भाषा के मैदान में,
धूल से बने घोड़े पर सवार योद्धा
मेरे फेफड़े मेरी कविताएँ हैं और आँखें किताब हैं,
और मैं, शब्दों के खोल में,
फेन के चमकते तट पर,
एक कवि जिसने गाया और मर गया
छोड़ कर यह झुलसता शोकगीत
कवियों के सामने,
आकाश के छोर पर उड़ते परिंदों के लिए
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