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कविता

एक औरत का चेहरा

अडोनिस


मैं एक औरत के चेहरे में रहता हूँ
जो एक लहर में रहता है
जिसे उछाल दिया है ज्वार ने
उस किनारे पर खो दिया है जिसने बंदरगाह
अपनी सीपियों में
मैं उस औरत के चेहरे में रहता हूँ
हत्यारी है जो मेरी,
जो चाहती है होना
एक जड़ आकाशदीप
मेरे खून में बहते हुए
पागलपन के अंतिम छोर तक
कुछ भी नहीं बचता पागलपन के सिवाय
मैं घर की खिड़कियों पर अब झलक पाता हूँ
अनिद्र पत्थरों के बीच की नींद से दूर,
चुड़ैल के सिखाए बच्चे की तरह
कि समुद्र में रहती है एक औरत
अपने इतिहास को अँगूठी में समेटे हुए
और वह तब प्रकट होगी
जब चिमनी में लपटें बुझने लगेंगी
और मैंने इतिहास को देखा स्याह झंडे में
जंगल की तरह आगे बढ़ते हुए
मैंने कोई इतिहास नहीं लिखा
मैं, क्रांति की आग की लालसा में जीता हूँ
उनके सर्जनात्मक जहर के जादू में
मेरी मातृभूमि इस चिंगारी के सिवाय कुछ भी नहीं है,
अनंत समय के अँधेरे में यह रोशनी

 


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