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कविता

टेडी बियर में बचे हुए भालू

ज्ञानेंद्रपति


बच्चियाँ जब
अपने टेडी बियर को छाती से चिपकाए
दुलार रही होंगी
छीज रहे भारतीय जंगलों में
और खोजी दलों और अनुसंधान-स्टेशनों के
       कचरालय बने जा रहे ध्रुवीय प्रदेशों में
बेमौत मारे जा रहे होंगे भालू
काले भालू और भूरे भालू
बगैर किसी रंग-भेद के

कौन मार रहा होगा उन्हें
अपने टेडी बियर को छाती से लगाए
सो जानेवाली बच्चियाँ
क्या कभी सपने में भी जान सकेंगी इसे
निहायत मुलायमियत से उनके आलिंगन से
छुल्लक भल्लूक को हटा उन्हें रजाई उढ़ानेवाले पापा
आज ही कहा था जिन्होंने - बेटे, पुराना पड़ गया है यह
कल ही बाजार से ला देंगे तुम्हारे लिए
एक नया टेडी बियर
प्यारा-सा टेडी बियर -
वही पापा
मदारियों से मुक्त करा
भालुओं को बरास्ते चिड़ियाखाना वापस जंगल
भिजानेवाले मोह से भरे उनके पापा
शामिल हैं
उनके और अपने भी अनजाने
भालुओं के हत्यारों में
और बेहतर कि इसे कभी न जानें जंगली मधुमक्खियाँ
कि शहदखोर शहदचोर भालुओं के लिए विलाप-नृत्य करती हुई
भँभोड़ डालें बस्तियों पर बस्तियाँ
आत्मघाती अभियानों में

नहीं, नहीं जान सकेंगी बच्चियाँ इसे
और न जान पाएँगे उनके प्यारे पापा
और पीढ़ी-दर-पीढ़ी
जंगली प्रदेशों से और बर्फानी प्रदेशों से अंततः मिट गए भालू
टेडी बियर बनकर दुकानों के शो केसों में बैठे रहेंगे अतीतातीत
वत्सल पिताओं की प्रतीक्षा में
मोहित बच्चियों की ममतालु बाँहों के बीच होगी उनकी अंतिम शरणस्थली
उनकी आत्मा को मिलेगा अभयारण्य
जहाँ माँ चिड़िया की तरह देह ही नहीं मन-प्राण की उष्मा से
सेएँगे वे
वक्षांकुर
भविष्योन्मुख ।

 


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