hindisamay head


अ+ अ-

कविता

वे दो दाँत-तनिक बड़े

ज्ञानेंद्रपति


वे दो दाँत-तनिक बड़े
जुड़वाँ सहोदरों-से
अंदर-नहीं, सुंदर
पूर्णचंद्र-से संपूर्ण
होंठों के बादली कपाट
जिन्हें हमेशा मूँदना चाहते
और कभी पूरा नहीं मूँद पाते
हास्य को देते उज्ज्वल आभा
मुस्कान को देते गुलाबी लज्जा
लज्जा को देते अभिनव सौंदर्य

वह कालिदास की शिखरिदशना श्यामा नहीं -
अलकापुरीवासिनी
लेकिन हाँ, साँवली गाढ़ी
गली पिपलानी कटरा की मंजू श्रीवास्तव
हेड क्लर्क वाई.एन. श्रीवास्तव की मँझली कन्या
जिसकी एक मात्र पहचान - नहीं, मैट्रिकुलेशन का प्रमाणपत्र - नहीं
न होमसाइंस का डिप्लोमा
न सीना-पिरोना, न काढ़ना-उकेरना
न तो जिसका गाना गजलें, पढ़ना उपन्यास -
वह सब कुछ नहीं
बस, वे दो दाँत - तनिक बड़े
सदैव दुनिया को निहारते एक उजली उत्सुकता से
दृष्टि-वृष्टियों से धुँधले ससंकोच
दृष्टियाँ जो हों दुष्ट तो भी पास पहुँचकर
कौतुल में निर्मल हो आती हैं

वे दो दाँत-तनिक बड़े
डेंटिस्ट की नहीं, एक चिंता की रेतियों से रेते जाते हैं
एकांत में खुद को आईने में निरखते हैं चोर नजरों से
विचारते हैं कि वे एक साँवले चेहरे पर जड़े हैं
कि छुटकी बहन के ब्याह के रास्ते में खड़े हैं
वे काँटे हैं गोखुरू हैं, कीलें हैं
वे चाहते हैं दूध बनकर बह जाएँ
शिशुओं की कंठनलिकाओं में
वे चाहते हैं पिघल जाएँ,
रात छत पर सोए, तारों के चुंबनों में

रात के डुबाँव जल में डूबे हुए
वे दो दाँत - तनिक बड़े - दो बाँहों की तरह बढ़े हुए
धरती की तरह प्रेम से और पीड़ा से
फटती छातीवाले -
जिस दृढ़-दंत वराहावतार की प्रतीक्षा में हैं
वह कब आएगा उबारनहार
गली पिपलानी कटरा के मकान नंबर इकहत्तर में
शहर के बोर्डों-होर्डिंगों पोस्टरों-विज्ञापनों से पटे
भूलभुलैया पथों
और व्यस्त चौराहों और सौंदर्य के चालू मानदंडों को
लाँघता
आएगा न ?
कभी तो !

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में ज्ञानेंद्रपति की रचनाएँ