किसी की हुई रहती है पौ-बारह किन्हीं की पौ फटती ही नहीं तमिस्राएँ उनकी आकांक्षाओं के जवाब में उतरती हैं उदयाचल से
हिंदी समय में ज्ञानेंद्रपति की रचनाएँ