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	तुम्हे 'माँ 'से लिया गया 
	और फिर 'माँ' में बदल दिया गया 
	हर चीज पेट से शुरू होती रही 
	कुछ अंदर की तरफ रास्ता बनाते रहे 
	कुछ बाहर की तरफ निकलते रहे 
	अपनी पसंदीदा जगह की ओर 
	ताकि रुक सकें कुछ क्षण 
	तय करते रहे कई 'पेट' से सफर 
	कि कहीं तो होगी वह बेशकीमती जगह 
	कम अज कम मैं ऐसा सोचती हूँ 
	यदि ऐसा नही है, 
	वे इस तरह से धकियाते क्यों चलते रहे 
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