संगीत भी कविता की तरह सच से बहुत दूर है तात्पर्य दोनों बहुत करीब हैं शायद दोनों सच हो भी नहीं सकते सच हमेशा एक कदम पीछे रखता है ताकि हम बोल सकें ज्यादा से ज्यादा इस बारे में
हिंदी समय में त्रिन सूमेत्स की रचनाएँ