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कविता

आजा की याद में

जीत नाराइन


आजा की याद में वैसे तो बहुत बातें आती
थोडा़ चित्त से उतरते नहीं
मेरे भाग में अमर हैं, हमें
रास्‍ता दिखाते हुए

कितने ऐसे-ऐसे बहादुर आजा सब
मर गए काम करते-करते
छोड़ गए कर्जा में, शाखा दर शाखा
याद गूँथते-गूँथते

पड़ गए कर्जा में
चुकाने को है कौन?
सोच को खींच-खींच के हम
ताकत से भरते हैं दम

 


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