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आजा की याद में वैसे तो बहुत बातें आती
थोडा़ चित्त से उतरते नहीं
मेरे भाग में अमर हैं, हमें
रास्ता दिखाते हुए
कितने ऐसे-ऐसे बहादुर आजा सब
मर गए काम करते-करते
छोड़ गए कर्जा में, शाखा दर शाखा
याद गूँथते-गूँथते
पड़ गए कर्जा में
चुकाने को है कौन?
सोच को खींच-खींच के हम
ताकत से भरते हैं दम
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