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कविता

नामी लोगों के लिए काम की क्या कमी!

जीत नाराइन


नामी लोगों के लिए काम की क्‍या कमी!

एक बार माँ के लाल बने
सात समुंदर पार जाकर काम किए
दूसरी बार सूरनाम के लाल हुए
जबकि इसी को अपना देश चुना

हथेली की पाँचों उँगलियाँ उड़ने लगी हवा में
मगर अंधे हुए
बाँह को झंडा का डंडा बनाकर
बहता ही बहता रहा ऐसे ही खून का खून
धरती की शक्ति में ये गड़ गए

सबकी जेब भरती हुई और देशवासियों के साथ
पटकनी दिलाकर अखाडा़ से बाहर फेंके गए
तब से ही गुस्‍सा करके, घूँसा बाँध के
शरम के कारण ही पिछड़ गए सब
गिरकर भारत की सेज से

 


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