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कविता

कोकइन : तीसरा हिस्सा

जीत नाराइन


इस धरती का नहीं है
लेकिन बखार भरा हुआ है

कोलंबियन कोक
डच-बाजार में
हमारे पासपोर्ट को
मोहर से गोद दिया
फोटो पर
धारक का ठप्‍पा मार दिया
मुझ पर शक और कोसना
अपने नाक से कोकइन का दम भरना
इज्‍जत की बात नहीं है ऐसा हम सोचते हैं
मगर -
जैकलीन नाम दिया था - वह
उस चीज का
वातरकांत में खींची थी रेखा - वह

आप वहाँ
हम यहाँ
और हथेली-भर मोटी बालू
साँस से खींचकर दम भर लिया
और हम लोग देखते हैं -
स्‍तब्‍ध और असहाय

एक दिखावा-सा लगता
थियेटर के नाटक की तरह
लेकिन इसका दाम
भरते हैं लोग।

 


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