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कविता

1. संगीत प्रभाकर

चंद्रमोहन रणजीत सिंह


मंगलाचरण

असतो मा सद् गमय
तमसो मा ज्‍योतिर्गमय
मृत्‍योर्मा अमृतं गमय।

प्रभुवर मैं उद्भ्रांत बता सतमार्ग
असत से हो नहीं प्‍यारा।
शुभ प्रकाश दो मन विश्रव्‍ध हो
अज्ञ तमोगुण हो नित क्षार।
तपोदीप्‍त जीवन हो बारंबार
मृत्‍यु से कर दो पार।
मिले अरमता ज्ञान विभो भी
हृदय बीच होवे संचार।


वंदना

नमन करूँ उस प्रभुवर को जो दयासिंधु कहलाते हैं।
नमन करूँ निर्वान रूप शिव सदा भक्‍त मन भाते हैं।।
नमन करूँ आदित्‍य जगत में अमल ज्‍योति हम पाते हैं।
आदि शक्ति को नमन करूँ सुरनर कर त्रास नशाते हैं।।
नमन करूँ गणनाथ सदा आरत जन विपद मिटाते हैं।
नमन मातु सरस्‍वती कृपा जेहि ईच्छित फल नर पाते हैं।।
नमन करूँ सर संत सृजन कवि कोविद मार्ग दिखाते हैं।
नमन करूँ पितु मातु स्‍नेह जो अतुलनीय बरसाते हैं।।


प्रभु की दया किस पर

जब दया प्रभु की होती है, तब काम सभी बन जाते हैं।
विघ्‍न डालनेवाले दोनों, हाथ मींज रह जाते हैं।।
दोष पराई या परनिंदा, को जो नर अपनाते हैं।
दया करेंगे प्रभु न उन पर, कार्य भंग हो जाते हैं।।
पर दोषों को कभी न लेते, पर गुण में मन लाते हैं।
दया हरि की रहती उन पर, काम सभी बन जाते हैं।।
सदा मंगलाचार करें, पर हित से विपत उठाते हैं।
ऐसे नर-नर से भी ऊपर देवकोटि मे आते हैं।।
सब में सदा विराजित ईश्‍वर जो ऐसे लख पाते हैं।
धन्‍य ज्ञान उस नर का है, नित शांत हृदय में गाते हैं।।


नर में नाग

सभ्‍य नहीं बन पाए नाग तुम सभ्‍य नहीं बन पाए।
उसको भी डस लिया है जिसने तुझको दूध पिलाए।।
अपने ही कर्म पर मन मे कभी नहीं पछताए।
जिसने रक्षा करी तुम्‍हारी तेहि शिर बज्र गिराए।।
नाता जोड़ के नाता तोडा़ अपनी चाल दिखाए।
विषधर साँपों से मिल करके, कौम का खून कराए।।
जो कुछ कहा किया ना उसको, लाज न मन में आए।
इसी से पापी तेरे मुख में, विधि दो जीभ बनाए।।
जिस घर में तू पला प्‍यार से, उसमे आग लगाए।
शिर पर रखनेवाले के शिर विष ज्‍वाला बरसाए।।


सिरनाम के निवासियों से

सिरनाम के रहनेवालों से एक सुंदर बात बताना है।
कुछ ऐसा कदम उठा करके, इस देश को स्‍वर्ग बनाना है।।
सब भेदभाव को दूर हटा, समता का भाव दिखाना है।
मत वैर हो भाई-भाई में, नित प्रेम का जल बरसाना है।।
सुरिनाम सितारा धरती का, सबको यह पाठ पढा़ना है।
वन पर्वत नदियों की शोभा, से मन होता दीवाना है।।
सिरनाम के बीर सपूतों, निशिदिन आगे कदम बढा़ना है।
जो सोते सोनेवालों को, निद्रा से उन्‍हें जगाना है।।


सरदार भगत सिंह

जो पैदा की भगत सिंह को, वो माता धन्‍य कहलाया।
वो भूमि धन्‍य भारत की, पडी़ जहँ वीर की छाया।। जो.।
बडा़ निर्भीक योधा वो, बडा़ ही क्रांतिकारी था।
सदा काँटो की सेजों पर ही, सोना उसके मन भाया।। जो.।
भरी थी खून में उसके, स्‍वदेश और जाति की सेवा।
गजब की शान पैदा करके, अंग्रेजों को दिखलाया।। जो.।
गले का हार फाँसी को, बना ली थी खुशी होकर।
लहू से सींच कर जिसने चमन भारत का लहराया।। जो.।
शहीदों की चिताओं पर लगें, हर वरष मेले।
भगत सिंह की अमर बलिदान, का दुनिया ने यश गाया।। जो.।


नव विवाहिता कुमारियों को शुभ आशिरबाद

सुमन सम सुकोमल अधर पर हंसी हो,
हृदय मे पती प्रेम जीवन में छाए।
सुकर्त्तव्‍य से हो कभी भी न वंचित,
विभा अंशुमाली की सानंद आए।
तपोदीप्‍त जीवन चतुर्दिक सुयश हो,
शताधिक वसंत आनकर करके जाए,
अमल आत्‍मा शांतिमय हर घडी़ हो,
न आदर्शता पर कभी तिल दिखाए।
सदा अपने जीवन में एक क्षण कभी भी,
अटल कीर्ति मे न कभी कुछ दिखाना।
सती पद्मनी सीता अत्रि प्रिया को,
सदा मार्ग दर्शक तुम अपना बनाना।
सानंद मय तीनों कुल को बनाके,
पती संग दीर्घायु जीवन बिताना।
ये आशिर्वचन नित्‍य ही सत्‍यमय हो,
सु श्री नाम को नित्‍य सार्थक बनाना।


सिरनाम देश हमारा

दुनिया मे एक सितारा, सिरनाम देश हमारा।
लगता है हमको प्‍यारा, सिरनाम देश हमारा।। दुनिया।
अति सुंदर ऋतु सुहाया, हर जन-जन के मन भाया।
नदियों की निर्मल धारा, सुनिनाम देश हमारा।। दुनिया.।
हिंदु मुस्लिम जापनी, चीना क्रियोउल क्रिस्‍तानी।
धरती का सभी दुलारा, सुरिनाम देश हमारा।। दुनिया.।
मिल ऐसा काम दिखावो, अति उन्नति देश बनावो,
बह जाय प्रेम की धारा, सूरिनाम देश हमारा।।


कर्म वीर बनो-1

कर्म वीर नर बनो कर्म से अभिमत फल सब पाते है।
सदा कर्म संचित होकर, बन भाग्‍य सामने आते हैं।
भूमंडल पर जगत पिता, धन राशि नित बरसाते हैं।
है जिसका जितना भाग्‍य, न उस से अधिक मनुज कुछ पाते हैं।
कवि तो हर घर-घर में हैं, कविता की शान दिखाते हैं।
पर युग युग के अंतर पर ही, कोई बाल्‍मीकि बन पाते हैं।
योग भोग में रत लाखों जन, भूतल पर दिखलाते हैं।
पर जनक राज सम जनक राजही, योगेश्‍वर पद पाते हैं।
योधा तो घर-घर में हैं, सब शूरवीर कहलाते हैं।
पर माँ कुंती को पाकर ही, कोई भीमसेन बन पाते हैं।
कोई धन से बल से विद्या से, नित नूतन लोग पुजाते हैं।
पर पवन पुत्र सम पवन पुत्र ही पूजनीय बन पाते हैं।
ये सब खेल कर्म का है, जो जैसा कर्म दिखाते हैं।
वे वैसा ही फल पाते हैं, वे वैसा ही बन जाते हैं।


कर्म वीर बनो-2

कर्म वीर नर बनो कर्म से, अभिमत फल सब पाते हैं।
सदा कर्म संचित होकर, बन भाग्‍य सामने आते हैं।
जो बनते नहीं कर्म वीर, नित कर्म‍हीन कहलाते हैं।
आत्‍मघात करनेवाले, वे कभी शांति नहीं पाते हैं।
मात पिता के सेवक हरजन, अपने को कहलाते हैं।
पर श्रवण भक्‍त सम अतुलनीय, इतिहास नया कर पाते हैं।।
दान सभी नर करते हैं, सब दानी वीर कहाते हैं।
पर शिवि दधीचि हरिश्चंद्र, कर्ण सम कभी लोग बन पाते हैं।।
रामभक्‍त लाखों जग में, श्रीराम सुयश नित गाते हैं।
पर बहुत दिनों के अंतर पर, कोई तुलसीदास बन पाते हैं।।
माता-पिता गुरु हर बालक को, ईश्‍वर भक्‍त बनाते हैं।
पर ध्रुव समान कोई बालक ही, बन भक्‍त अमरपद पाते हैं।
ये सब खेल कर्म का है, जो जैसा कर्म दिखाते हैं।
वे वैसा ही हफल पाते हैं, वे वैसा ही बन पाते हैं।


कर्म वीर बनो-3

कर्म वीर नर बनो कर्म से, अभिमत फल सब पाते हैं।
सदा कर्म संचित होकर, बन भाग्‍य सामने आते हैं।
जो बोते विष बीज, मधुर फल पाते नहीं तरसाते हैं।
मधुर बीज बोने वाले, फल मधुर हाथ में पाते हैं।
जिसका हो शुभ कर्म जहाँ तक, देश भक्‍त बन पाते हैं।
हो ऊँचा कर्त्तव्‍य तभी कोई, भगत सिंह बन पाते हैं।
तीर चलाते घर-घर में, सब तीरंदाज कहाते हैं।
पर शब्‍दवेध करके ही कोई, पृथ्‍वीराज पद पाते हैं।
देश जाति की सेवा में, जन संकट सभी उठाते हैं।
पर उदय सिंह का सुत राणा, राणाप्रताप बन पाते हैं।
निज देश की रक्षा में साहस कर, हरजन शस्‍त्र उठाते हैं।
पर क्षत्रपति श्रीवीर शिवासम विरला ही बन पाते हैं।
ये सब खेल कर्म का है, जो जैसा कर्म दिखाते हैं।
वे वैसा ही फल पाते हैं, वे वैसा ही बन पाते हैं।


कर्म वीर बनो-4

कर्म वीर नर बनो कर्म से, अभिमत फल सब पाते हैं।
सदा कर्म संचित होकर, बन भाग्‍य सामने आते हैं।
आदि सृष्टि कृतयुग से ही, जो कर्म वीर कहलाते हैं।
नाम न मिटता है उनका, मरकर भी अमर बन जाते हैं।।
सूरिनाम देश की धरती पर, विद्वान विपुल दिखलाते हैं।
पर सौ वर्षों में जन समाज, नंदन पांडेय को पाते हैं।
युग-युग तक कर कठिन तपस्‍या, तपोनिष्‍ठ बन जाते हैं।
तब ज्ञान अधीन श्री हा. अधीन, नरसिंह निकल कर आते हैं
आदर्श कर्म करते-करते, नर मे नर श्रेष्‍ठ कहाते हैं।
तब चाँद तिलकधारी सम, सच्‍चा देश भक्‍त हम पाते हैं।
कर्मवीर कर कर्म भाग्‍य के, खोटे अंक मिटाते हैं।
आँधी अंगारों से लड़कर, पर्वत में राह बनाते हैं।
ये सब खेल कर्म का है, जो जैसा कर्म दिखाते हैं।
वे वैसा ही फल पाते हैं, वे वैसा ही बन पाते हैं।


बिन माता के प्‍यार कहाँ

वेद शास्‍त्र सब बता रहे हैं, बिन भक्ति निस्‍तार कहाँ।
आदर्श चरित्र बिना प्‍यारे, पाया कोई सत्‍कार कहाँ।
जो कोई नर बना आलसी, किया कर्म विस्‍तार कहाँ।
ज्ञानी जन यह बता रहै, कर्त्तव्‍य बिना अधिकार कहाँ।
बिना सूर्य के गया कभी, इस दुनिया से अँधियार कहाँ।
बिन वर्शत ऋतुराज मिला, भूमंडल बीच बहार कहाँ।
साहस बिना कभी भी कोई, कर सकता उपकार कहाँ।
सारा जग यह मान रहा है, बिन माता के प्‍यार कहाँ।


वीर अभिमान्‍यु

वीर अर्जुन का दुलारा आज रण में सो गया।
वीर था वह वीरता से वीरता कर खो गया।
शत्रु दल में था न कोई जिसको घायल ना किया।
आग बरसाता था रण में लाल धरती हो गया।।
कर्ण द्रोणाचार्य से वीरों की अरमा तोड़ दी।
बन गया बेजोड़ योधा काल सा वह हो गया।
जुट गए लाखें कुँवर पर घोर अत्‍याचार की।
फिर भी अभिमन्‍यु का मुख विकराल यम सा हो गया।
वीर अगणित घेर कर अन्‍याय का रण कर रहे।
वीर गति पाया जगत में एक सितारा खो गया।


ठीक नहीं

पत्‍यर सा दिल जिसकी उससे प्रेम लगाना ठीक नहीं
जो धरती हो उषर उस पर बीज बहाना ठीक नहीं।
सत्‍यकर्म आचार सभ्‍यता को विसराना ठीक नहीं।
अत्‍याचारी के आगे निल शीश झुकाना ठीक नहीं।
जो जिसका अधिकार कभी अधिकार हटाना ठीक नहीं।
मात-पिता की सेवा को मन से विसराना ठीक नहीं।
निज नारी को त्‍याग प्‍यार वेश्‍या से लगाना ठीक नहीं।।


मत बनो नादान

क्‍यों बनते हो नादान कौम को पतन करानेवाले।
अपने में बनते नादान लड़ते हो जैसे हैवान,
गया किस ओर तुम्‍हारा ध्‍यान, अपनी मान घटानेवाले।। क्‍यों.।
सीखो सबसे करना प्‍यार, छोडो़ मन से सभी विकार
जीवन नैया करलो पर, उलटी चाल चलने वाले।। क्‍यों.।।
ईर्ष्‍या क्रोध कपट अभिमान, ये सब हैं भारी शैतान,
इनसे बचो सभी इंसान कह गए चतुर कहानेवाले।। क्‍यों.।।
किसी से भी करना तकरार, बनता है जीवन बेकार,
खोजाता सच्‍चा व्‍यवहार नीचे सदा गिरानेवाले।। क्‍यों.।।
धर्म गँवाना ठीक नहीं
अंधा होना ठीक बुराई कभी देखना ठीक नहीं।
गुँगा होना ठीक मगर है बुरा बोलना ठीक नहीं।
बहरा होना ठीक परई निंदा सुनना ठीक नहीं।
निर्बल होना ठीक बली बन करके समाना ठीक नहीं।
संकट सहना ठीक मगर संकट से डरना ठीक नहीं।
मर मिटना है ठीक धर्म को मार डालना ठीक नहीं।
भूखा रहना ठीक मगर भूखा लौटाना ठीक नहीं।
गला कटाना ठीक मगर निज धर्म गँवाना ठीक नहीं।


कहाँ मिलेंगे

देश-देश में ढुँढ़ फिरो, जहं तक सारा संसार।
सब इतिहास ढूँढ़ कर देखो है जितना विस्‍तार।

कहाँ मिलेगे कृष्‍णचंद्र सम, पुरुषोत्तम औतार।
कहाँ राम सम व्रतधारी, कहँ मात सिया सम नार।
कहाँ मिले बजरंगबली सम अद्भुत वीर अपार।
हरिश्चंद्र सम दानी संकट, सहे सहित परिवार।
धर्मपुत्र सम सत्याव्रती था, जिनका सत्‍याचार।
कहँ अर्जुन सम सात्विक योधा, साक्षी है संसार।
बालक ध्रुव सम भक्‍त बनाया, प्रभु को निज आधार।
तपोदीप्‍त जीवन कर जिसने, किए धर्म से न्‍यार।
माता-पिता के भक्‍त श्रवन, सम भरत राम कर प्‍यार।
अनुसूया सम सती शिरोमणि किए विश्‍व उजियार।


सिरनाम के सतियों से

सुनो सिरनाम के सतियों तुम्‍हें कुछ कर दिखाना है।
महाराणा शिवा सम वीर को फिर से बनाना है।
झाँसी महारानी को कैसे भूल जाना है।
न सोने का समय जो सो रहे उनको जगाना है।
ये है सिरनाम अपना देश इसे मत भूल जाना है।
हमारी मातृ भूमि है स्‍वर्ग इसको बनाना है।
न अबला बनके तुम बैठो बनो दुर्गावती फिर से।
अमर हो नाम दुनिया में तभी सुख चैन पाना है।


पहले आप बनो

सत्‍य मार्ग पर चलो भला है ऐसा गर सिखलाओ तो।
उससे भला है आप सत्‍य पथ पर चलके दिखलावो तो।
रोती दुनिया को देख भला है दर्द हृदय में लावो तो।
पर उससे भला है दु:ख सहकर जग को हँसना सिखलावो तो।
विद्या पढ़ना भला है जग में पढ़कर लाभ उठावो तो।
पर उससे भला है विद्या पढ़ औरों को पाठ पढा़वो तो।
आध्‍यात्मिक तत्त्व मुक्ति पावन पथ भला है गर अपनावो तो।
पर उससे भला है इसके संग भूले को राह बतावो तो।
इष्ट मित्र परिवार पुत्र को भला है गले लगावो तो।
पर उससे भला है इसके संग दुखियों की दर्द मिटावो तो।
हे प्रभु है यह भला दया कर मेरा त्रास हटावो तो।
पर उससे भला है हे स्‍वामी सब जग के दर्द मिटावो तो।


दुनिया अजब तमाशा है

यह दुनिया अजब तमाशा है, कोई रोता है कोई गाता है।
कोई चिढ़ता है चिढ़ बातें से, कोई हँसकर उसे चिढा़ता है।
कोई नेक काम को करता है, कोई करके बुरा सुख पाता है।
कोई ठोंकत ताल अखाडे़ में, कोई भाग के जान बचाता है।
कोई रात को सोता है घर में, कोई सारी रात चुराता है।
कोई भला मित्र का करता है, कोई मित्र का गला दबाता है।
कोई गांधी नेहरू और सुभाष के, बातों को अपनाता है।
कोई शत्रु से मिल देश कौम का, पापी नाश करता है।
कोई सत्‍य आचरण पर चल करके, सदाचार अपनाता है।
कोई सदाचार में लात मार नर से राक्षस बन जाता है।


चेतो प्राणी

कौन कठिनता तुझे है प्राणी, प्रभु नाम के जपने में।
बिना भक्ति के शांति मिलेगी, कभी नहीं नर सपने में।
क्षण-क्षण आयु बीत रही है, नहीं आती बात समझने में।
माया में क्‍यों भूल रहे हो, सोच तनिक मन अपने में।
जबतक स्‍नेह दीप मे राजत, जगमग ज्‍योति है जलने में।
श्‍वास अंत हो जाने मे, फिर देर नहीं है खपने में।
भ्रम-तम भंग तभी होगी, फिर शांति मिलेगी जीवन में।
जब तू मनको लगा हरी मे, भ्रांति भंग हो तपने में।


देर हो गई

चोट्टी बिल्‍ली साधु जी की चेलिन बन गई,
तुलसी की माला डाल कर योगिन बन गई।
लोग समझे प्‍यारी बिल्‍ली योगिन बन गई,
साधु जी की लुटिया लेके चंपत हो गई।
बोली बिल्‍ली लोगों काहे हमसे अब डरो।
हम हैं सच्‍ची योगिन कहना मान लो मेरो।
देखो लोगों बात कोई ये है ना नई।
सेठ जी की थैली काट लंबी हो गई।
चोट्टी बिल्‍ली दूध की रखवाली करती है।
घर की मलकिन निर्भय होकर अंदर सोती है।
सारी दूध पीकर बिल्‍ली कहाँ चल गई।
बात समझ में आई पर अब देर हो गई।


झाँसी की रानी

जब झाँसी की रानी रण में, क्रोधित हो अस्‍त्र चलाती थी।
बैरी दल को काट-काट, सीधे यमपुर पहुँचाती थी।
किए लाल वर्ण जब आँखों को, रण में तलवार उठाती थी।
वह महासती दुर्गामाता, या काली सी दिखलाती थी।
भुज दहिन में तलवार लिए, बाँए भाला चमकाती थी।
घोडे़ की बागे दाँतो में, रख करके अश्‍व चलाती थी।
वह महाकाल विकराल रूप, लख गोरा दल घबडा़ती थी।
वह प्रलयंकर घनघोर घटा, सम बिजली सी बरसाती थी।
वह तेज पुंज लक्ष्‍मीबाई, जिस ओर नजर दौडा़ती थी।
क्षण इधर-उधर क्षण किधर गई दल काई सी फट जाती थी।।


सुंदर ज्ञान

मैने सुंदर ज्ञान को पाया, हे मन उसे निभाना।
अति मीठे बैन सुनावो, सब से नित प्‍यार दिखाना।
दुखियो का दर्द मिटावो, मत बुरे साथ में जाना।
मत संकट में घबडा़ना सुख में न कभी इतराना।
फूलो से हँसाना सीखो सीखो भवरों से गाना।
और हवा से सीखो, प्‍यार से गले लगाना।
भूले को राह बताना, अभिमान न मन में लाना।
पढ़ विद्या और पढा़ना, जीवन में लाभ उठाना।।


शिवाजी को माता की शिक्षा

शिवाजी की माता शिवाजी से बोली,
समर में तू हलचल मचा देना बेटा।
अमर नाम भारत का करके दिखाना।
न कर्तव्‍य को अपने भुला देना बेटा।
करो देश जाति धर्म की तू सेवा,
इसी में भलाई तुम्‍हारा सदा है।
कदम आगे-आगे बढा़ते ही जाना,
जो सोते हैं उनको जगा देना बेटा।
घुसे आके बैरी घरों में हमारे,
हमें नाश करने को मन में विचारे।
कभी उनकी पूरी न होवे तमन्‍ना,
सबक उनको जाके सिखा देना बेटा।
उठा जैभवानी को जौहर दिखाना,
बिगड़ती हुई काम लड़कर बनाना,
समरभूमि लाशों से पट जाय सारी,
नदी खून की तुम बहा देना बेटा।
शिवा तेरी माता सिखाती है तुमको,
झुका देना बैरी के बेजोड़ हमको।
बनो एक दिन सारे दक्षिण के राजा,
न ये बात मन से भुला देना बेटा।


प्रभु अपनी विनय सुनाया

तुम नाथ उसे अपनाया, जो शरन तुम्‍हारे आया।
उसे नहिं दया छिपाया, जो भक्‍त तेरा गुण गाया।
नित अपनी दया दिखाते, पतितों को तुम अपनाते।
मैं भी एक पतित कहाया, क्‍यों नाथ हमे विसराया।
हरि करुणा के तुम सागर, सुर नर मुनियों में नागर।
तेरी महिमा अगम कहाया, जो सकल जगत मे छाया।
हरि तुम हो अंतर्यामी, कुछ छिपा न जग के स्‍वामी।
कुछ हमसे नहीं बन पाया, प्रभु अपनी विनय सुनाया।


कृष्‍ण महिमा

धनि-धनि कृष्‍णचंद्र भगवान, मुरली मधुर बजाने वाले।
हृदय में बसिए कृष्‍ण मुरार, पतित जन को करते उद्धार,
प्रभुवर सुंदर रूप अपार, अद्भुत खेल रचानेवाले। धनि.।
करते नित जन का कल्‍याण, लीला पुरुषोत्तम भगवान,
अजय असुरों को किए निदान, वसुधा भार मिटनेवाले। धनि.।
रख ली द्रुपद सुती की मान, जग को दीन्‍हे जीवन दान,
भक्‍त जन करते हैं गुणगान, गीता ज्ञान सुनानेवाले। धनि.।
गाता यश सारा संसार, तेरी माया अपरंपार,
सब कर एक तुम्‍हीं आधार, हरि बेअंत कहानेवाले। धनि.।


अदृश्‍य चोरों से सावधान

तेरे घर में गुस गए प्‍यारे अँखिया खोलो ना।
कैसा सुंदर महल बना है शोभा अपरंपार।
सरज चाँद सितारे इसमें है इसमें नौ द्वार।
पृथ्‍वी जल आकाश पवन और अग्नि तत्‍व है सार।
इन पाँचों से महल बना है ज्ञानी करो विचार। तेरे.।
काम क्रोध मद मोह लोभ और मत्‍सर है छह चोर।।
निर्भय होकर घुसे हैं घर में तुझे समझ कमजोर।।
सत्‍य अहिंसा दया क्षमा है विद्या दम धन तोर।
लूट रहे अनमोल रतन को तू नहीं करता शोर। तेरे.।
योग ज्ञान विज्ञान शस्‍त्र को लीजे वेग उठाय।
इन अदृश्‍य चोरों को जल्‍दी घर से देहु भगाय।
तभी शांती पावोगे प्‍यारे जन्‍म सफल हो जाय।
पडे़ न अंत समय पछताना कीजै यही उपाय। तेरे.।


कायर कौन

कायर का लक्षण बलताऊँ, कायर कौन कहाता है।
है कौन काम के करने से, नर कायर का पद पाता है।।
जो धर्म कर्म से विमुख रहा, धुर्तों का संग निभाता है।
दान यज्ञ व्रत सत्‍य कर्म से, मन को सदा हटाता है।
अपने भाई से लड़ने में, जो भीमसेन बन जाता है।
गैरों से टक्‍कर लेने में, पहले घर में घुस जाता है।
कौम की हत्‍या करने में, गैरों से जो मिल जाता है।
पैसे के कारण देश कौम का पापी नाश कराता है।
ये सब लक्षण जिस नर में हों, वह कायर नीच कहाता है।
इनसे जो बच जाता है वह धर्म वीर कहलाता है।


आजाद सिरनाम

देश मेरा आजाद हुआ है जै बोलो सिरनाम की।
जाग पडो़ ध्‍यारे जनता ये धरती है आराम की।
जै-जै सिरनाम की।
सन् पचहत्तर मास नवंबर तिथि पचीस है जब आया।
बडे़ प्‍यार से अपने देश में अपना झंडा फहराया।
आजादी का गीत सभी जनता ने हिल-मिल कर गाया।
गूँज उठी स्‍वर आसमान में धन्‍य भाग अपना पाया।
भूल न जाएँ हम इस दिन को ये दिन है शुभ काम की। जाग पडो...
मातृभूमि सिरनाम की जिससे सुंदर लगन हमारा है।
अमर रहे यह देश सितारा यही बुलंदी नारा है।।
सभी कौम मिल रहे प्रेम से हरजन मन से धारा हैं।
राम राज्‍य बन जाय देश में तब समझो उजियारा है।
लहराए नित विजय पताका सुख छाए धन धाम की। जाग पडो़...
हिंदु हो या मुस्लिम चीना हो क्रियोल या जापानी।।
बडे़ प्‍यार से मिल कर रहना मत करना कोई नादानी।
बने देश सिरनाम सितारा मंगल दायक सुखदानी।
बढे़ चलो नवयुवक देश के बापू की शिक्षा मानी।
हर कण-कण से गूँज उठे स्‍वर जै-जै-जै सिरनाम की। जाग पडो़...


सिरनाम के जवानों

मेरे ज्‍वानों शीघ्र सँभल जावो, कुछ कर्तव्‍य अब दिखलाना है।
हुआ देश आजाद मेरा इस देश को स्‍वर्ग बनाना है।
सिरनाम हमारी जन्‍म भूमि, जो प्राणों से भी प्‍यारा है।
कोई कदम हटाना ना पीछे, कुछ बिगडी़ राह बनाना है।।
यह देश एक फुलवारी है, फूलों से लाभ उठाना है।
सुमत रूप सुंदरता से मन, मंदिर विमल सजाना है।
मत आपस में हो फूट तभी, कल्‍याण देश को पाना है।
बल बुद्धि विद्या के बल पर, अपना सौभाग्‍य जगाना है।


सिरनाम के सपूतों

सिंह सपूतो उठो तुम्‍हें सिरनाम की लाज बचानी है।
घर-घर जाकर आज जगा दो जौहर भरी जवानी है। सिंह...
फिर दुनिया से कहो देश सिरनाम न कभी झुकेगा।
आजादी का अमर दीप यह हरगिज नहीं बुझेगा।
मस्‍तक ऊँचा रहे देश का दुनिया को दिखलानी है। सिंह...
जब कोई बन सर्प हमारे कभी सामने आवेगें।
तो फिर हम भी डट कर उनके सारा वंश मिटावेंगे।।
कण-कण में सिरनाम देश की ज्‍वालामुखी जगानी है। सिंह...


पता कुछ न पाया

घटा दु:ख की घिरकर मेरे शिर पे आया,
गए छोड़ प्रीतम पता कुछ न पाया।
तड़पती हूँ मैं रात दिन याद कर के,
बिताती समय माथ पर हाथ धर के।
न दिल की कहानी किसी को सुनाया। गए छोड़...
न आए सजन और न पाती पठाए,
खता क्‍या हमारी समझ में न आए,
ये दिन कैसे हमको विधाता दिखाया। गए छोड़...
लिए साथ प्रीतम सखी सब हमारे,
मनाती हैं उत्‍सव मगन मन से सारे।
मगर मुझ अ‍भागिन को रोना ही आया। गए छोड़...


सिरनाम

जन्‍म भूमि सिरनाम मेरा जो स्‍वर्ग लोक से प्‍यारा है।
इस मिट्टी की तिकल करूँ तो जीवन सफल हमारा है।
जहं धर्म-कर्म आचार सभ्‍यता पर चलता जन सारा है।
मंदिर मस्जिद गिरजा घर में लगता प्रभुवर का नारा है।
जिस देश की सुंदर वायु से जीवन चल रहा हमारा है।
जिस धरती का अमृत जल पीकर आयु हमने धारा है।
अति विचित्र पर्वतमाला प्राकृतिक सुयश विस्‍तारा है।
सुंदरता से पूर्ण नदी की बहती निर्मल धारा है।
जहं नव वसंत सम हरा भरा लख देश में ग्रीष्‍म हारा है।
मन भावन राष्‍ट्रीय चेतना से जन मन उजियारा है।
जहं राष्‍ट्र पिता श्री बापु का सिद्धांत सभी को प्‍यारा है।
जहं मानवता की अमर मूर्ति से दानवीर मुखकारा है।


अनमोल वचन-1

ये अनमोल बोली पर करना विचार
नेता सुभाष कह गए, वीर केशरी नाद।
अपना रक्‍त बहाकर, कर लो देश अपना आजाद।।
कायर कौम सदा दुनिया मे, हो जाता बरबाद।
वीर पुरुष बन करके रहना, न करना प्रमाद। ये अनमोल...
वीर जवाहर हमें दिए, अनमोल वचन का ज्ञान।
हैं भविष्‍य सब बच्‍चे मेरे, इन पर रखना ध्‍यान।।
जापे बच्‍चे बन जाँय हमारे, वीर पुरुष विद्वान।
देश हमारा गौरवशाली निश्‍चय होय महान। ये अनमोल...
वचन बोल अनमोल दे गए नानक संत महान।
छोटे हो करके रहना तो बनिहो चतुर सुजान।
दूब समान रहे छोटे बन, तब होगा कल्‍याण।
घास-पात सब जला आग से, बचा दूध गुणवान। ये अनमोल...
देश विदेश मे सत्‍य का, करे प्रचार सानंद।
ऐसे निर्मल वचन को, कहे विवेकानंद।।
जो ऐसे करते नहीं, कहाँ मिले आनंद।
बन गए मेढक कूप के जानत आनंदकंद। ये अनमोल...


अनमोल वचन-2

ये अनमोल बोली पर करना विचार
संत कबीर बता गए, अमर बोल की सार
खुद काना हैं गैर को, हँसते ताना मारा।
सदा कुटिलता मे रहें, रखते बुरा विचार।
मनुवा उनसे दूर रहो, तब होईहे निस्‍तार। ये अनमोल...
कवि बिहारी लाल ने, रचे सतसई ग्रंथ।
वचन बोल अनमोल की, भले दिखाए पंथ।
कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
यह खाए बैराय जग, वह पाए बौराय। ये अनमोल...
कवि श्रीदाग ने हर नर को सुंदर बोल समझाया।
बुरी आदत है जिसका उसको ऐसे कहके बतलाया।
वसर ने खाक पाया लाल पाया या गुहर पाया।
मिजाज अच्‍छा अगर पाया तो सब कुछ उसने भर पाया। ने अनमोल...
जर्मन के मरहूम गोयबल्‍स कह गए बातें विचार।
गप्‍प बात को सत्‍य बता के खुलकर करो प्रचार।
लगे रहो अपने कामों मे मत लो हिम्‍मत हार।
एक दिन दुनिया उसी गप्‍प को मान जायगी यार। ये अनमोल...


अनमोल वचन-3

ये अनमोल बोली पर करना विचार।
ऐसे जग में लोग बहुत हैं करते काम निराला,
घर में भूंजी भाँग नहीं है ओढ़ के चले दुशाला।
इसी से नाथुराम बता गए बडे़ बोल की माला,
अरहर की तो टटिया है पर है गुजराती ताला। ये अनमोल...
दुष्‍टों के जो संग किए, हो गई उनकर नाश।
बचन बोल अनमोल कहें, गोस्‍वामी तुलसी दास।
दुष्‍ट संग विधि देय नहीं, बरु होय नरक में बास
इन बातों से भरा पडा़ है, दुनिया का इतिहास। ये अनमोल...
एक वचन अनमोल कहें, कवि रहीम मन लाय
अमर बोल मत भूलो प्‍यारे दियो ठीक बतलाय।
प्रीत न ऐसे कीजिए, जस खीरा ने कीन।
ऊपर से तो दिल मिला भीतर फाँके तीन। ये अनमोल...
जो अपने जिंदगी को हर समय तूफाँ में लाया है।
बडा़ बनता वही इकबाल ने सबको बताया है।
मिटा दे अपने हस्‍ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे।
कि दाना खाक से मिलकर गुले गुल्‍जार होता है। ये अनमोल...


अनमोल वचन-4

ये अनमोल बोली पर करना विचार।
काका सुक्‍खु कह गए एक वचन अनमोल।
करो विचार सुजन जन मिलके मन की आँखे खोल।।
हल-हल बेंट कुदारी के, नित हँसते रहना नारी से।
ये तीनां काम निकम्‍मा, जब हंस के बोले दम्‍मा।। ये अनमोल...।
धुर्तों से संसार भरा है छाई उनकी अक्‍स।
कैसे मिटेगी इनकी हस्‍ती कडी़ है जग में नक्‍स।
एक वचन अनमोल बता गए चाचा अल्‍लाह बक्‍स,
जब तक रहेगी दुनिया तब तक रहहिं चुतिया शख्‍स। ये अनमोल...।
काका दूलम कह गए हन्‍सु के दरम्‍यान,
कोई कहे कि कौवा भागा लेकर तेरी कान।
कौवे के पीछे मत दौडो़ क्‍यों होते हैरान,
छूकर कान देख लो पहले दूर करो मत ज्ञान। ये अनमोल...।
कहे बचन अनमोल एक गोदन नंबरदार
मींया जी की दौड़ वहीं तक जहँ सस्जिद की द्वार,
आगे पता नहीं है उनको कैसा यह संसार,
पर घमंड में भरे पडे़ हैं कैसा हीन विचार। ये अनमोल...।


दुलहन की बिदाई

आज दुलहन चली ससुराल को, उसके दिल में सजन का प्‍यार है,
जाके सपनों की दुनिया बसाएगी, एक आशा की छाई बहार है
अपने संग की प्‍यारी सखियाँ आकर सब मिल जाते हैं
माता-पिता सब शोच रहे नैनों से नीर बहाते हैं,
आज बेटी पराई हो गई, मोह माया से मन बेकरार है, जाके...
सारे जग की रीति है एक दिन, साजन के घर जाना है,
जाकर साजन के घर जीवन को, नया सजाना है
आज मैके से होगा बिछड़ना, अब साजन गले का हार है, जाके सपनो...


अशुभ कर्म से दूर रहना

सदा शुभ कर्म अपनाने में शरमाना नहीं अच्‍छा।
दगाबाजी किसी के साथ में करना नहीं अच्‍छा।।
धर्म या सत्‍य कर्मों को है ठुकराना नहीं अच्‍छा।
जुवाडी़ चोर व्‍याभिचारी कभी रहना नहीं अच्‍छा।।
मातु-पिता गुरु भक्ति को विसराना नहीं अच्‍छा।
लगाना प्रीति परनारी से है हरगिज नहीं अच्‍छा।
करो संग धुर्त्तों का कभी रहता नहीं अच्‍छा।
बिगाडो़ काम गैरों का कभी होगा नहीं अच्‍छा।
करो निंदा किसी का भी बुरा ही है नहीं अच्‍छा।
दुखी को देखकर हँसना मेरे मित्रों नहीं अच्‍छा।


शुर वीर कौन

वीरों का लक्षण बतलाऊँ वीर कौन कहलाता है।
कौन काम के करने से नर शूर वीर पद पाता है।
जो धर्म कर्म से विमुख नहीं धुर्तों से जो बच जाता है।
दान यज्ञ व्रत सत्‍कर्म से मन को नहीं हटाता है।
अपने भाई से लड़ने में हरगिज नहीं पैर उठाता है।
गैरों से टक्‍कर लेने में जो भीमसेन बन जाता है।
गैरों से मिलकर कभी नहीं निज कौम का नाश कराता है।
लालच में पड़ देश कौम को नीचे नहीं गिराता है।
ये लक्षण जिस नर में हो वह धर्मवीर कहलाता है।
जो इनसे उलटा चलता है वह कायर पतित कहाता है।।


पक्‍का चोर

बन गए धरती के भगवान, पक्‍का चोर कहाने वाले।
अब ना हंस बने चौहान, कौवा चलते सीना तान,
बिल्‍ली पकडे़ शेर के कान, हम हैं तुम्‍हें खेलानेवाले। बन...
धनि-धनि हो कलियुग महाराज, धरे गदहों के सिर पर ताज,
गया जग से शेरों का राज, असली वीर कहानेवाले।। बन...
रखते धर्म-कर्म का ज्ञान, उनको हँसता सकल जहान,
होता है धुर्त्तों का मान, नकली वेष बनाने वाले।। बन...
सज्‍जन करना खूब विचार समझोगे बात हमार,
आया कठिन समय की धार, उलटी चाल चलानेवाले बन...


पुरुषोत्तम श्रीकृष्‍ण

भूल कर संताप पाप भंजन जन रंजन श्रुति गाए।
पुरुषोत्तम श्रीकृष्‍ण लिए औतार भाग्‍य वसुधा पाए।।
पुण्‍य भूमि पर मार्तंड मंडलवत दिव्‍य प्रकार आए।
अधिनायक हर जन गण मन के प्रभु ने अपनी दया दिखाए।।
ज्ञान शक्ति सौभाग्‍य प्रदाता जयति-जयति यश जग गाए।
भूमंडल मंडल सुर भूषण नित आरत जन मन भाए।
रविकर सम तम हरण रहत तिमि त्रास संत जन निधि पाए।
दिया लोक विभूषित भूषण सुगति भक्ति मंगल छाए।।


बे अंत भगवान

गजब है प्रभु तेरी माया की छाया,
गए हार कोई नहीं पार पाया।
ये बे अंत सागर नहीं अंत इसका,
समझ से है बाहर समझ में न आया।
हजारों हुवे ज्ञान वाले जगत में।
सभी थक गए हार कर सर झुकाया।
जगे ज्‍योति जब नाथ तेरे दया की,
भगे मोह निद्रा तभी कुछ दिखाया।
दया कीजिए हम शरन में तुम्‍हारे,
अरज नाथ अपना तुम्‍हें सुनाया।


धर्म गँवाना ना अच्‍छा

धर्म छोड़ने से फूलों के, सेज पर सोना ना अच्‍छा।
धर्म के रक्षा में काँटों पर सोना है सबसे अच्‍छा।।
हरिश्चंद्र ने दानकर्म को, तजे न संकट लाख सहे।
सोच लिया दुख सहना अच्‍छा, धर्म छोड़ना न अच्‍छा।
तेगबहादुर कतल हो गए, मोह किया ना काया का।
खून बहाकर सिखा गए, निज धर्म छोड़ना ना अच्‍छा।
वीर हकीकत हँसते-हँसते, झूल गए थे फाँसी पर।
उस बालक से सीखलो प्‍यारे, धर्म त्‍यागना ना अच्‍छा।
सती पद्मिनी कूद पडी़ थी, महा भयंकर ज्‍वाला में।
सिखा गई घर-घर सतियों को, धर्म गँवाना ना अच्‍छा।।


इनसान बनो

धर्म किए जा नर जीवन में तब होगा कल्‍यान।
काम क्रोध मद लोभ छोड़कर, बन जावो इंसान।
पर नारी पर धन को अपने, मन से मोह हटाना।।
विषय वासना मे फँसकर, ना अपना जन्‍म गँवाना।।
राम और सीता की शिक्षा, माने गर संसार।
अत्‍याचार रुके सब जगके, सज्‍जन करो विचार।
प्रभु ने लाखों संकट सहकर, किए धर्म का काम।
त्‍याग और तप की मूरत हैं, दीनबंधु भगवान।
मर्यादा पुरुषोत्तम रघुपति, राघव राजा राम।
संत जनों के प्‍यारा जग मे, अति पवित्र हरिनाम।।


उपसंहार

करुणा के हे वरुणालय हे विश्‍वपिता हे विश्‍वधार।
ऐसा ही आलोक हृदय में दूर हटे सारी विकार।
हो पवित्रता मन वाणी में हर जन-मन में हो नित प्‍यार।
शुद्ध ज्ञान की वृद्धि सदा हो त्रिविध ताप से करदो पार।
दो ऐसा आशीष दयाकर प्रेम तुम्‍हारा हो आधार।
निंदादिक सब क्रूर कर्म से रहूँ दूर हे गुण आगार।


सुंदर विचार

काहू सों न रोष-तोष काहू सों न राग-द्वेष,
काहू सों न बैर भाव काहू सों न घात है,
काहू सों न बक-वाद काहू सों नहीं विषाद,
काहू सों न संग न तो काहू पच्‍छ पात है,
काहू सों न दुष्‍ट बैन काहू सों न लेन देन,
ब्रह्म को विचार कछू और न सुहात है।
सुंदर कहत सोई ईसन को महा ईश।
सोई गुरु देव जाके दूसरी न बात है।।


2

बोलियो तो तब जब बोलने की सुधि होय,
न तो मुख मौन गहि चुप होय रहिए।
जोरिए तो तब जब जोरिबे कि जानि परै,
तुक छन अरथ अनूप जामे लहिए।।
गाइये तो तब जब गाइबे को कंठ होय
श्रवन के सुनत ही भन जाइ गहिए
तुक भंग छंद भंग अरथ मिलै न कछु
सुंदर कहत ऐसी बानी नहीं कहिए।।


3

प्रीति सी न पाती कोऊ प्रेम से न फूल और,
चित सो न चंदन सनेह सो न सेहरा।
हृदय सो न आसन सहज सों न सिंहासन
भाव सी न सेज और सून्‍य सो न गेहरा।।
सील सो न नहान अरू ध्‍यान से न धूप और,
ज्ञान सो न दीपक अज्ञान तम केहरा।
मन सी न माला कोऊ नाम सो न जाप और,
आतम सो देव नाहि देह सो न देहरा।।


ज्ञान

कौन कहता है नाथ तेरा पता है न कहीं।
रहता सदैव तू है सज्‍जन के मन में।।
अंध वह नर है तुझे जो देखता है नहीं।
दु:ख भरी दीन-दुखियों की चितवन में।।
क्‍या नहीं अवश्‍य हम पाते तुमको है सदा।
ओज से गंभीर धीर वीर के वचन में।।
करता निवास भारती के तू भवन में है।
न्‍याय-दया-प्रेम-शील-सत्‍य के सदन में।।


सच्‍चा सुख

सच्‍चा सुख मिलता कहाँ है और किस भाँति।
देखते उसे न कहीं हम त्रिभुवन में।।
मान में न गान में न सुधा-रस पान में।
जल में न थल में न गिरि में गगन में।।
मिलता नहीं है वह बन उपबन में भी।
पाया नहीं जाता वह भूप के भवन में।।
पाते है उसे सदैव वे ही निज जीवन में।
तन-मन-धन जो गँवाते है लगन में।।
हे नाथ निज रूप हमको दिखाओ।
तुम पास आओ या हमको बुलाओ।
ब्रजचंद्र छिपिए न धन श्‍याम में अब।
ज्‍योत्‍स्‍ना दिखाओ सुधा को बहाओ।
पुरुषों को अपनी हँसी दान देकर।
कुछ तुम हँसो कुछ हमे भी हँसाओ।
चरणों के शूलों को मृदु फूल कीजे।
करके सुनम को सुफल प्रभु बनाओ।
बालक
जिसने ही पढा़ होगा जरा ध्‍यान से इतिहास।
उसको ही मिला होगा इस बात का आभास।।
लड़को ही पर निर्भर है किसी देश की सब आस।
बालक ही मिटा सकते हैं निज देश की सब त्रास।।
चाहे तो किसी देश को बस स्‍वर्ग बना दे।
निज धर्म से हट जाँच तो मिट्टी में मिला दे।।


2

जिन देश की उन्‍नति का है सब भार इन्‍हीं पर।
निज धर्म की रक्षा का है सब भार इन्‍हीं पर।।
इनकार इन्‍हीं पर है तो इकरार इन्‍हीं पर।
इन्हीं पर रिआया भी है सरकार इन्‍हीं पर।।
बालक जो सुधर जाँय तो सब देश सुधर जाय।
हर एक का दिल मोद से भंडारा सा भर जाय।।


3

बालक ही तो हैं देश के सम्‍मान का भंडार।
बालक ही तो हैं देश के धन-धान्‍य के करतार।।
बालक ही तो हैं देश की बल-शक्ति का आकार।
बालक ही तो हैं देश के‍ निज धर्म का आगार।।
सच मानो अगर देश के सब बाल सुधर जाँय।
सब सिरनाम के बाशिंदों के घर मोद से भर जाय।।


4

इनके ही बिगड़गे से बिगड़ जाता है सब देश।
इनके ही बदलने से बदल जाता है सब भेश।।
इनके ही भले होने से कुछ आती नहीं पेश।
इनके ही भले होने से मिट जाता है सब क्‍लेश।।
इनके ही तो हाथों में हैं सब आगे आसा।
इनके ही दमों चलती है सद्धर्म की स्‍वासा।।


5

सच मानिए निज देश के करतार यही हैं।
सच जानिए निज देश के भरतार यही हैं।
सच देखिए निज देश के हरतार यही हैं।
सच देखिए निज देश के रखवार यही हैं।
इनके ही बिगड़ने से बिगड़ जाता है सब देश।
इनके ही सुधरने से सुधर जाता है सब देश।


6

जिस देश के बच्‍चों में हो उत्‍साह की लाली।
करते न हों निज चित्त को उत्‍साह से खाली।।
खेलों में भी तजते न हों निज ओर की पाली।
पड़ जाय कठिनता तो समझते हो बहाली।।
बस जान लो उस देश में आनंद का है वास।
आपत्ति फटकने नहीं पाती है कभी पास।।


ग्रंथ पूर्ण होने की तिथि

जलधि-जलधि ग्रह भूमि शुचि, सन ईसवी बखान।
मासाहित्‍य पुनि अंक तिथि पूर्ण ग्रंथ प्रमान।।

 


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