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फागुन का रथ कोई रोके
ठूठीं शाखाएँ पतियाने लगीं,
घेरे-घेर कर बतियाने लगीं,
ऐसे में कौन इन्हें टोंके,
फागुन का रथ कोई रोके।
खेतों की हरियाली बँट गई,
फसलें सोना होकर कट गईं,
घर ले जाऊँ किस पर ढोके,
फागुन का रथ कोई रोके।
आओ नदिया तीरे बैठें,
सुस्ता तनें, फिर अंदर पैठें,
आते हैं लहरों के झोंके,
फागुन का रथ कोई रोके।
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