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रूठो मत प्रान! पास में रहकर
झरती हैं चाँद-किरन झर...झर...झर...।
सेंदुर की नदी, झील ईंगुर की
माथे तुम्हारे तुम सागर की
चूड़ी-सी चढ़कर कलाई पर
टूटो मत प्रान! पास में रहकर
झरती हैं चाँद-किरन झर...झर...झर...।
आँखों की शाख, देह का तना
टप्-टप्-टप् महुवे का टपकना।
मेरे हाथों हल्दी-सी लगकर
छूटो मत प्रान! पास में रहकर
झरती हैं चाँद-किरन झर...झर...झर...।
एक घूँट जल हो तो पीये
कब तक कोई छल में जीये
टूटे समंदर, टूटे निर्झर
दो मत तुम प्रान! पास में रहकर
झरती हैं चाँद-किरन झर...झर...झर...।
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