मन न हुए मन से हर क्षण कटते रहे किसी छन से। तुमसे-उनसे मेरी निस्बत क्या-क्या बात हुई। अगर नहीं, तो फिर यह ऐसा क्यों? दिन की गरमी रातों की ठंडक चायों की तासीर समाप्त हुई एक रोज पूछा निज दर्पन से। मन न हुए मन से हर क्षण कटते रहे किसी छन से।
हिंदी समय में देवेंद्र कुमार बंगाली की रचनाएँ