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कविता

वसंत आया

लीलाधर जगूड़ी


वसंत आया तमतमाया
खून खौलाया
इतनी सारी लाशों के बीच वसंत आया

दबे हुए फूटकर बँधे हुए जैसे छूटकर
जोड़-तोड़वाले जैसे पूरी तरह टूटकर निकले
पत्तों से भरा पेड़ झन्‍नाया
इतनी सारी लाशों के बीच वसंत आया

वह भी आया जो मँजा हुआ था
वह भी अँजा हुआ था जिसकी आँखों में
राजनीति का कीच
इतनी सारी लाशों के बीच

हरियाली दहाड़ती आयी चीखती नहीं
फाड़ती आयी ऊसर बंजर और अकाल का
मुँह धो बाल काढ़ती आयी

वह भी आया हर कीमत पर जो बचा हुआ था
बिना कहाये नीच जिसे सफल होना था
इतनी सारी लाशों के बीच

ठूँठों ने हड़कंप मचाया
एक हाथ से दूसर निकला
दूसर से फिर तीसर निकला

दहला भी फिर हुआ सवाया
जमकर दिल दहलाया
इतनी सारी लाशों के बीच वसंत आया
बिजली चमकी रह-रह चमके हाथ पैर
अलग पड़ी कुछ टाँगे चमकीं
खून सिंचे कुछ रस्‍ते चमके

बिजली चमकी फोटू खिंचे
खिंच आये कुचले चेहरे
फूटी आँखें जबड़े भिंचे
आया दयानिधान करुणा उलीच
इतनी सारी लाशों के बीच

धाँय से वसंत आया। खून से नहाया
ताजा लाशें लाया
एक पर एक को तहाया
कोई नहीं कि जिसके सर था

चल रही थी एक जाँच
इतनी सारी लाशों के बीच
वसंत आया तमतमाया खून खौलाया।

 


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