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कविता

सुबह का फोटू

लीलाधर जगूड़ी


जामा मस्जिद के पास एक औरत चीख रही है
एक मर्द की गद्दारी पर
मर्द लाचार सा मगर साफ-साफ दुराचार सा
दिखता चुप है

वह जब-जब कुछ कहता है चीख पड़ती है औरत
सुनती है जामा मस्जिद एक औरत की चीख
दूर से आती हुई अजान की तरह
(औरतें अजान नहीं देती)

अँधेरा मिटाती। किवाड़ सी चरमराती
जामा मस्जिद से एक अजान आती है
(पर्दों की जिद्दी और हठीली आवाज)
जिसे वह सुनती है चीखती है अजान के वक्‍त
आँसू पीकर तोड़ती है रोजा

जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर लेटी है वह
मीनारों से भी ऊँची और गुंबदों से भी भारी
चीख की तरह।

 


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